एक बार इश्क़ और साँसों की भिड़ंत हो गई
दोनों में जम कर बड़ा दिखने की ठन गई
इश्क़ और साँसों की कश्मकश बढ़ती गई
मग़र किसी को भी जीत हासिल ना हुई
इश्क़ ने कहा मेरे बिना होता जीना मुश्क़िल
इसलिए मैं हुआ साँसों से भी बहुत बड़ा
साँसें बोली, जो थी सुन रही बहुत देर से थी चुप
मेरे बिना तुम कुछ नहीं, मैं नहीं तो इंसां नहीं
साँसों बिना शरीर नहीं इंसां नहीं, अजीब दुविधा फँसी
और इश्क़ बिना इंसां का जीना मुश्क़िल, कैसी ये घड़ी
खूब कश्मकश बढ़ती रही, भिड़ंत भी जारी रही
ना कोई निष्कर्ष निकला, ये दुविधा यूँ ही बनी रही