शुक्रवार, 25 जून 2021
मेरा चाँद
वो कोई और बात थी
तुमसे मिलना और मिलकर बिछड़ना
कहने को सामान्य सी बात थी l
मिलने का तो ठीक बिछड़ने की वो कोई और बात थी l
कारण जो तुमने दिया सही था
पता नहीं क्यों बार बार ऐसा लगता है कि वो कोई और बात थी l
लौट कर वापस नहीं आये
इसलिए लगता है वो कोई और बात थी l
आते तो कभी ना लगता
कि वो कोई और बात थी l
वो रात
नहीं भूलती कभी वो रात
थी कुछ अलग बाकी रातों से वो रात
ऐसी नहीं थी कोई बड़ी बात
पर जाने कैसे बन गयी बिन बात वो बात
नहीं कही जाती थी किसी से
दिल पर लगी थी एक बड़ी घात
अनायास नहीं था शायद कुछ भी
शायद बिछाई थी तुमने पहले से कोई बिसात
नहीं जानती थी मैं यह सब
लगा था दिल को एक बड़ा आघात
नहीं भूलेगी ना हि मिटेगी
दिल ओ दिमाग़ से वो एक रात....
ऐ मेरे प्यारे बिस्तर
तुम सा ना कोई सच्चा हमसफर ऐ मेरे प्यारे बिस्तर,
सुकून मिलता है जब मिलते हम तुम गले लगकर l
जब रहता दिल दिमाग़ चलयमान और विचलित,
तब नहीं सूझता कुछ भी किंचित् l
निंदिया रानी भी रहती आँखों से कोसों दूर,
और ख्यालों में ही चलते, जाने निकल जाते कितनी दूर l
नींद ना होती पूरी जब भी, दिल भी रहता हरदम बेचैन,
आँखों में छाती लालिमा नहीं रहता शरीर को भी जुनून,
जब सोते आकर तुम पर, तब आता तुम को भी सुकून l
करना चाहते तब तुम बातें, पर निंदिया ले जाती मुझको,
तुमसे सपनों में बहुत दूर........
तुम सा ना कोई सच्चा हमसफर ऐ मेरे प्यारे बिस्तर.....
जो तुमने किया
जो तुमने किया मेरे साथ,
गर वो मैंने किया होता,
तो देखा नहीं जायेगा तुमसे l
जो हालात पैदा किये तुमने,
गर वो मैंने किये होते
तो सहा नहीं जायेगा तुमसे l
जो किया हमारे साथ तुमने,
वो किसी से कहा नहीं जायेगा तुमसे l
जो ढा रहे हो हम पर जुल्म इतने,
हमारा तो ठीक,
पर भगवान का सामना किया ना जायेगा तुमसे l
विरोधाभास
देख विरोधाभास जगत के,
आँख मेरी जब नम होती है l
मन की बातें कहने का तब,
कविता ही माध्यम होती है ll
एक बात कहनी थी
तुमसे एक बात कहनी थी
हम पर कैसे गुज़री रातें तुम बिन,
वो बात गहरी थी l
बेशक़ तुम समझ ना सकोगे,
फिर भी तुमसे ही कहनी थी,
तुमसे एक बात कहनी थी llll
माँ
माँ को क्या लिखूँ मैं, उसकी एक रचना हूँ ।
माँ को क्या रंगूँ मैं, उसकी एक कला हूँ ।
माँ से क्या कहूँ मैं, उसने मुझे समझा है ।
जो कभी कहा नहीं मैंने, उसने वो सुना है ।
माँ को क्या गढूँ मैं, उसने मुझे जड़ा है ।
माँ को क्या पुकारूँ मैं, वो हर पल मेरे साथ है।
माँ से क्या क्षमा माँगू मैं, बिन मांगे क्षमा किया है।
मेरी त्रुटियाँ अक्षम्य हैं, मैंने किया और उसने सहा है ।
मुझे क्षमा कर दो माँ , मुझे क्षमा कर दो माँ ।
सालगिरह
आज ही के दिन मैंने तुम्हें पाया
और पाया था तुमने मुझे l
बीते ग्यारह वर्ष विगत मानो,
बीते हों ग्यारह जनम जानो.
खड़े थे हम तुम सजे इक दूजे के विमुख,
चहुँ ओर थी भीड़ और छाई थी खुशहाली,
कहीं बजा रहा था गीत और कहीं संगीत,
फिर भी मन में भरा था जाने कितना दुख l
खड़ी थी तुम्हारे सम्मुख फिर भी खड़ी ना थी,
जाने किन विचारों में थी खोई.
आँखें और मन हो व्याकुल ढूंढ रहे थे माँ को,
जो आत्मा से मेरे पास थी, पर शरीर से मेरे पास ना थी.
मन भरा हुआ था अगिनत पीड़ा और दुख से,
नहीं कह पा रही थी कि बाबुल मत भेजो अपने आंगन से,
भरी और डबडबाई आँखें देख रही थी बाबुल को,
और एक पल देखती थी प्रियवर को l
मन चिंता और शंकाओं के सागर में गोते लगाता था,
कि क्या यह समझेगा मुझे और जन्मों के हमारे रिश्ते को l
आस
कैसे कह दूँ कि आज भी तुमसे प्यार नहीं है,
इन आँखों को अब भी तुम्हारा इंतज़ार नहीं है l
बँधी हूँ तुमसे तो बन्धन हमेशा रहेगा,
प्यार है तुमसे तो संग भी सदा रहेगा l
साक्षात् में तुम मेरे पास नहीं,
पर आत्मा से तुम कभी अलग नहीं l
अंश है तुम्हारा मेरे पास,
फिर क्यों ना होगी तुमसे मिलन की आस l
तुम बिन उदासी है हर तरफ इधर,
इक उम्मीद दिखती है देखती हूँ मुड़कर जिधर l
दिख जाए शायद कहीं तुम्हारी एक झलक,
नहीं पाती जब तुम्हें कहीं, बैठ जाती हूँ इक तरफ l
जन्मों का पता नहीं, इस जन्म का संग था हमारा,
मैंने चाहा, पर तुमने कभी ना समझना चाहा l
अपना घोंसला छोड़ कर चिड़िया कब आबाद हुई है,
खुले आसमां के नीचे वो हरपल बरबाद हुई है l
अपनी खुशियाँ वह घोंसले में ही पाती है,
जहाँ दुखी होने पर भी वह खुशी के गीत गाती है l