मंगलवार, 6 जुलाई 2021

तन्हा रातों में

अंधेरी तन्हा रातों में जब

आँखें तकिया भिगोती हैं

हाथ अनायास ही

माफ़ी के लिए उठ जाते हैं

और दिल गिड़गिड़ाता है

और कहता है कि माफ़ कर दो

जाने कितने दिल तोड़े

और पाँव तले रौंदे होंगे

जाने कितने दिल तोड़े

कितनी आत्मा दुखायी होंगी

जो आज ये सज़ा मुकरर्र 

की है उसने मेरे लिए!

प्यार की धूप ढल गयी

वो रात सुहानी ढल गई
प्यार की धूप भी ढल गयी
बहुत गुमां था प्यार पर
ये भ्रम भी दूर कर गयी
कभी प्यार का सूरज
चढ़ा था परवान अब वो
प्यार की धूप भी ढल गयी
दूर हुई सब ग़लतफहमियाँ
रात आई लेकर अब दूरियाँ
फैला अंधियारा ढली रोशनी
जब पहली बार मिली थी तुमसे
तुम कहते थे चाँदनी मुझसे
कभी कहते परिधि और
कभी कहते प्यार से बुलबुल
भूली सब प्यारी बातें वो
अब कहते हो मुझे सिर्फ़ मनहूस
क्या कहूँ किसी से जबकि
जानती हूँ मैं कि तुम्हारे
प्यार की धूप अब ढल चुकी

सुबह सुबह

सुबह सुबह जब उसने ली अंगड़ाई

गालों पर उसके जैसे छाई अरुणाई

आदित्य ने गालों से जुल्फ़ें सिमटाई

चहुँ और लालिमा अपनी है बिखराई

देख पवन भी उन्मुक्त गगन में मानो

उसकी ज़ुल्फ़ों की छटा ने घटा फैलाई

हैरान हूँ मैं ये सोचकर कि मालिक ने

क़ायनात् कितनी फ़ुर्सत से है बनाई

जाने क्या उसके मन में समाई और

उसने ये प्रकृति हमारे लिए बनाई