सोमवार, 6 दिसंबर 2021
" आख़िरी बार माफ़ कर दो "
तुम कहते हो कि "मुझे आख़िरी बार माफ़ कर दो"
मग़र कैसे माफ़ कर दूँ, सपनों के बेरहम हत्यारे को
मेरी रूह से माफ़ी की उम्मीद ना करो, बेहतर होगा
रूह छलनी है, जिस्म बिखरा हुआ, मरे हैं ज़ज़्बात
तू ही बता ऐ क़ातिल, तेरी ख़ता कैसे माफ़ कर दूँ
ग़लती की माफ़ी होती है, गुनाहों की नहीं, फ़िर कैसे
खुदा भी माफ़ नहीं करता ऐसी ग़लती, फ़िर मैं कैसे
गुनाह जो तूने किये, माफ़ कभी नहीं किये जायेंगे
देखना तू भी वो मंज़र सज़ा का, वो भी होगा वहीं
तड़पन और बिखरन तू ख़ुद में तब महसूस करेगा
वो फ़ैसला उसका भी भयानक से भयानक रहेगा
बस तू तैयारी में रह अब, फरमान तेरे नाम का है
उसके दरबार में पेशी तेरी कहीं किसी रोज़ अब होगी
कोई फ़रियाद चीख़ पुकार अब काम ना तेरे आयेगी
सोच ले, बख़्शा हरगिज़ ना अब तू कभी जायेगा
ए आदम, जान ले तेरी ज़ात ने बहुत धोख़ा दिया
समेट ले अब सब, तेरी डोली निकाली जायेगी
कोई विदाई गीत ना अब कोई तेरी सखी गायेगी,
बिन मुहूर्त के तेरी डोली अब निकाली जायेगी
माफ़ी मुझसे नहीं उससे मांग, रज़ा उसकी मानी जायेगी
" मिलन की प्यास "
तड़प बेहिसाब, तन्हाई बेहिसाब
मिलन की प्यास भी है बेहिसाब
क्या करे बेचैन दिल है मेरा यूँ
तड़प मिटती नहीं तेरी यादों से
किसी शाम सोचूँ तुझे और तू आ जाए
आँखें बंद करूँ तो दीदार तेरा हो जाए
" पीछे छूटी चीज़ें "
पीछे छूटी हुई तमाम चीज़ें
अनमनी दोपहरियां
अंधेरे के दीप्त क्षण
फिर याद आने लगे हैं
वे लयात्मक हंसी की बातें
कपसीली सांझ के उतरते अर्थ
अब भी थर-थराती तीन पहर झील में
दूरी के विष का इतिहास रच रहे हैं
अरण्यक दृष्टि संपन्ना
तपस्विनी का धैर्य सराहनीय है
जिसने विगत महाभारत में
किसी को अभिशाप नहीं दिया
उन तमाम कसैले अनुभवों को
अपने अंतर में समेट काग़ज़ पर उतार
होंठों से हँस दिया
" काफी नहीं है "
क्यों नहीं जी पाती हूँ
तमाम खुशियाँ छिपाये
हर उन क्षणिक पलों को
जो यूँ ही गुज़र जाते हैं ज़िंदगी में
कभी बन जाते कल्पना
कभी हो जाते सपने
मग़र फ़िर भी रहते हैं
सिर्फ़ मेरे और मेरे अपने
क्या यही एहसास काफी नहीं है
खुश होने के लिए?
सब कुछ खोने के बाद
जिंदा हूँ मैं इतना काफी नहीं है
" वर्जित फल "
वर्जित फल चखना
कितना मीठा लगता है
जबकि नहीं जानते कि
उसके असीम फीकेपन की
एक भी फांक
गले से उतरनी
उतनी ही कठिन होगी
जितनी की
वर्जित फल को चखने से
ख़ुद को रोकना!!
" यथार्थ "
अनेक बार
यथार्थ की आँखों से
मंज़िल को बहुत पास से देख
मन मचल उठता है,
पास जाने पर, जाने क्यों
दूर छिटक जाती है वह
ठीक उसी तरह जैसे
पत्ते पर रखी ओस का फिसलना
चाहकर भी ना पकड़ पाने की
नाउम्मीद हृदय को झकझोरती है,
और शायद कहना चाहती है
कोशिशें अभी और बाकी हैं
अंजाम वक़्त के पिंजरे में
भविष्य की तरह आज भी क़ैद है !
" दिल अक्सर रोया "
मैंने तो यह देखा है
कि मैं जब भी मुस्कुरायी हूँ
मेरा दिल अक्सर रोया है
दुनिया के जागरण में,
सारी उम्र बैठ कर भी
चुपचाप अकेला सोया है
नहीं जानती
सुप्त अवस्था का सच,
सच है या जागने का सच,
इतना कुछ काटने के बाद भी
बहुत कुछ बोया है!!
"ख़ामोशी "
आज फ़िर एक बार उसी ख़ामोशी ने
उसी ख़ामोशी से मेरा दामन पकड़ा
शायद शब्दों की कमी पड़ गयी
तुम्हें समझाने को,
तुम चुप रहकर भी
कुछ कह गए उस ख़ामोशी में
एक पल के लिए ख़ामोश हो गयी
मेरी ज़िंदगी उसी ख़ामोशी में!
" रिश्ता "
एक रिश्ता जो अभी बन रहा था
टूटने लगा बनने से पहले
एक सहारे से उठते थे हम
गिर गए मग़र संभलने से पहले!
जलाने लगे जो उम्मीदों के चिराग़
बुझा दिए गए जलने से पहले!
सीखने लगे थे आप से मुस्कुराना,
रुला दिया हमें हँसने से पहले!
भिक्षा के लिए जो हमने झोली फैलायी,
खींच लिया हाथ कुछ देने से पहले!
परिभाषा जीवन की खोजने जो निकले,
ज़िंदगी छिन गयी जीने से पहले!
एक महल बनाया सपनों की दुनिया में,
गिर गया नींव रखने से पहले!
क्या यही अर्थ होता है रिश्तों का,
टूटना होता है इन्हें बनने से पहले!
" प्रतीक्षारत हूँ "
सरिताओं का सागर
गहरा उमड़ा था
जब देखा था तुमने
स्नेहिल आँखों से
चाहती थी डूब जाऊँ उनमें
परंतु नहीं पा सकी
तुम्हारा वह अस्तित्व
फ़िर प्रतीक्षारत हूँ
इसलिए आज तक
शायद मिलोगे कभी तो
स्वप्न में या ख्यालों में
एक अस्पष्ट-सी
परछाईं बनकर!
" लगाव है "
मैं उदासीन हूँ
हर उस चीज़ के प्रति
जो सिर्फ़ देती है दिखाई
जिसमें नहीं होती
भावनाओं को
कुरेदने वाली गहराई
मेरा लगाव है
हर उस चीज़ से
जो सिर्फ़ दिखती ही नहीं
महसूस भी होती है
दिल के किसी कोने में
यदि तुम भी वही हो
जो महसूस किये जाते हो
तो बेशक़
तुमसे मेरा लगाव है!
"आँसू "
आँसू एक प्राकृतिक मरहम है
दिल में लगी चोट के लिए
उससेे उत्पन्न दर्द के लिए
औरत के लिए, मर्द के लिए
बच्चों के लिए, वृद्ध के लिए
सुख के लिए, दुःख के लिए
पर के लिए, ख़ुद के लिए!
जब यह तरल मरहम
आँखों से निकलकर
कपोल की पगडंडी से
वृहत " सीनाक्षेत्र " में
प्रवेश करता है
तब ठंडक पहुँचती है
दिल में राहत मिलती है
और फिर होता है बोझ हल्का
एक हद तक भूलते हैं
हम ग़म कल का!
" बाबूजी "
बचपन में जब छोटी थी और थोड़ी सी मोटी थी
कभी पिताजी कभी बाबूजी कह उन्हें पुकारा करती थी
मेरे छोटे गुदगुदे हाथों को अपने मजबूत हाथों में थाम
वो कभी सैर को और कभी बाज़ार ले जाया करते थे
अनगिनत चीज़ें दिलाया और खिलाया करते थे
उन दिनों हम कितने अमीर हुआ करते थे
पिता का साया माँ का प्यार ही असीम दौलत होती थी
उन दिनों इस बात की कहाँ समझ थी, साथ समझ आता था
अब समझ आया है जब वो पास नहीं हैं
पिता का साया क्या होता है माँ की ममता क्या होती है
हमारी तो दुनिया माँ से शुरु और पिता पर खतम होती है
इन दिनों की कभी कल्पना भी नहीं की थी लेकिन गुज़ार रहें हैं
उनके बिना ज़िंदा तो हैं बस जीवन काट रहें हैं
हो जाती कभी बहुत व्याकुल, तब सत्य अपनाया नहीं जाता है
बीत रहे दिनों की कभी कल्पना नहीं की थी लेकिन बिता रहें हैं
उनके बिना ज़िंदा तो हैं लेकिन बस दिन बीत रहें हैं
जाते ही उनके खत्म हुए सब रिश्ते नाते और मायने
छूटे टूटे सब रिश्ते थे झूठे, जो कहते कभी हम जान हैं उनकी
कोई याद नहीं, कोई बात नहीं, कोई पुकारता नहीं है अब
बस जीये जा रहें हैं चले जा रहें हैं, मंज़िल का पता नहीं पर
बेमन्ज़िल ही सफ़र पर चल पड़े हैं बेमकसद चल रहे हैं
किसे कहें अब बाबूजी और किसे माता कह पुकारें
कैसे काटें अब उनके बिन दिन, जब रहें ना कोई सहारे
पिता आसमान और माँ धरती है दोनों असीम अनंतर
थकते नहीं कभी हारते नहीं बस चलते जाते निरंतर
जितना नमन करूँ कम है, आज फिर मेरी आँखें नम हैं
उन्हें याद कैसे करूँ, भूलते ही कब हम हैं
अपने से ही कहाँ हैं, उनके से ही दिखते हम हैं
"अलविदा "
जाने को तो सब बिन मुहूर्त के ही मेरी ज़िंदगी से चले गए
ना कुछ कहा, ना कुछ सुना, ना कभी कुछ बताया
चुपचाप ही ज़िंदगी से हथेली पर रेत की तरह फिसल गए
मौत ने अलविदा कहने का मौका तक ना मुझे दिया
सच है ये कि जाने वाला लौट कर कभी नहीं आया है
लेकिन जब कोई बता कर जाता है कि अच्छा अब मैं जाता हूँ
तुम खुश रहना, तुम्हें अभी बहुत लंबा सफ़र तय करना है
तब कलेज़ा फट जाता है एक अश्रुधारा अनायास ही बह जाती है
जो बिन कुछ कहे चले गए, उन्हें भी ना रोक सकी थी
जो बोल कर जाने को अलविदा कह रहें हैं उन्हें कैसे रोकूँ
नाराज़ हो कर जाने वाले को भला कब कौन रोक सका है
सोचती हूँ इस दिल पर पत्थर ही रख लूँ अब शायद
जाने कितनों को बेवज़ह जाते हुए बस मुझे देखते रह जाना है
कलेज़ा फट कर रह जाता है, दुनिया बेगानी बेमानी हो जाती है
जाने वालों की यादें रह जाती हैं, यादें ही वक़्त बेवक़्त आती हैं
ऐसा लगता है कि आसमान फोड़ दूँ या धरती का सीना चीर दूँ
बस कुछ भी ऐसा करूँ जिससे गए हुए लोगों को वापस ला दूँ
अब कैसे मैं उन्हें पुकारूँ और कैसे अपना हाल समझाऊँ
" दिल आज मायूस है "
दिल आज मायूस है, वजह ना कुछ ख़ास रही
छोड़ कर जाने वालों की भीड़ चारों तरफ रही
वापस कभी कोई आया नहीं जाने क्या बात रही
लाख पुकारूँ, कोई आवाज़ नहीं आती, सोचती रही
सूनी देहरी, पुरानी चौखट, कब से सूनी ही रही
बस आने वालों की आने की बाट जोहती ही रही
ना कभी कोई आया, मैं भी द्वार पर बैठी ही रही
पथराई डबडबाई आँखें आस में बस खुली ही रही
" इतना कहे "
काश बस वो इतना कहे मुझसे
कि उसे भी मुझसे मोहब्बत है
जितनी मुझे उससे है बेइंतेहा
रहेगी हमेशा चाहे रहूँ मैं जहाँ
कहे कि वो रह नहीं सकता
बिन मेरे उलझती हैं उसकी साँसें
हक़ है उसका मुझ पर इस्तेमाल करे
जताए कि वो मेरा और मैं उसकी हूँ
उसकी साँसों में महकती ताउम्र रहूंगी
उसे बेपनाह इश्क़ मैं यूँ ही करती रहूंगी
" तुम में रम जाऊँ "
आओ हो जलमग्न तुमसे लिपट जाऊँ मैं,
रूह से रूह की तरह तुम में समां जाऊँ मैं
परी सी दिखती, तुम्हारा रसपान करूँ मैं,
सदियों से तुमसे मिलन की प्यास लिए मैं
तुमसे मिलकर अपनी प्यास बुझाऊँ मैं,
आओ आज करीब मेरे तुम में रम जाऊँ मैं
" मुझे भी दर्द होता है "
दर्द होता है मुझे भी, मग़र कोई समझता ही नहीं
हमेशा एक नया ज़ख़्म मिलता है सौग़ात में ही सही
कैसे संभाले, इतने हैं कि संभाले संभलते ही नहीं
ज़ख़्म बेहिसाब यूँ मिल जाते हैं जैसे बिन मांगी मुराद
सालों से चल रहा सिलसिला इनका रुकता ही नहीं
जाने कब थमेगा ये रिवाज़ कोई बतलाता भी नहीं
हैरान हूँ देख कर मैं, जाने क्या सभी को सूझती रही
चाहती हूँ दर्द का आभास उन्हें भी हो, मग़र होता नहीं
भूल जाती हूँ हर ज़ख़्म, समेट कर रखना चाहती नहीं
बताना चाहती हूँ कि दर्द मुझे होता है, कह पाती नहीं
" अधूरापन "
अधूरी ख्वाहिशें लेकर कौन जीना चाहता है
मग़र अधूरी ख्वाहिशें लेकर हर कोई जी रहा है
ये अधूरापन ना जीने देता है ना मरने देता है
कैसे बयाँ करें, दिल में एक हुजूम सा उठता है
अधूरी कसक से अक्सर दिल कराह उठता है
ना चैन कहीं ये पाता है, बस बेचैन ही रहता है
दिल दिमाग़ में अधूरेपन को हर कोई ढो रहा है
ना बता पा रहा है ना ख़ुशी से चल पा रहा है
" इंतज़ार का वक़्त "
ठहर जाता है वक़्त, जब मुलाक़ात का वक़्त नज़दीक आता है
लम्हें कटते नहीं, वक़्त गुज़रता नहीं, बस कहीं ठहर सा जाता है
दूरी सही नहीं जाती है, और तुम्हारा भी कोई पैग़ाम नहीं आता है
कैसे कहूँ तुमसे, और देर का फ़ासला मुझसे सहा नहीं जाता है
हमारे मिलन का हर लम्हा तो जाने कैसे निकल सा जाता है
रोके नहीं रुकता थामे नहीं थमता, बस फ़िसलता सा जाता है
काश कभी ऐसा भी हो, मुलाक़ात के लम्हें कस कर पकड़ लूँ
उन मोहब्बत के लम्हों को कभी खत्म और फिसलने ही ना दूँ
मेरे हिस्से इंतज़ार ही क्यों आया है, सब्र का बांध टूट जाता है
जब देरी लगती है तुम्हें आने में, इंतज़ार का वक़्त ठहर जाता है
" हाथ छुड़ा कहीं जाना नहीं "
रात गयी सो बात गयी, शब्दों से कैसे आपको समझाऊँ,
मन में पुरानी यादों और इंसानों को लेकर कोई मोह नहीं
आप समझते हैं मन में अब भी उन्हें लेकर कोई आस रही
मैं अपनी बात शब्दों से समझाने में हमेशा असफल ही रही
वो एक बीता हुआ कल है, वापस उस कल में मुझे जाना नहीं
मेरी बातें सुन कर कितने प्यार से आसानी से पूछ लिया कि
"मैं सब ठीक कर दूँ", इन चंद शब्दों में क्या क्या नहीं समेट लिया
प्यार, समर्पण, लगाव, स्नेह, त्याग, आस सब कुछ उड़ेल दिया
इस बात पर कितनी व्याकुल हो गयी थी मैं कैसे समझाऊँ
कि मेरी किस्मत ख़राब रही और उनकी नीयत ख़राब रही
वो इंसान ही नहीं हैं इस लायक कि कभी प्यार को समझ पाते
आगे जो हो उसके लिए तैयार हूँ, मुझे ग़लत कभी करना नहीं
बहुत सहन किया, वापस उस नरक में मुझे अब कभी जाना नहीं
जो करते रहे अगर वो सही था, जो मैं कर रही हूँ वो भी ग़लत नहीं
ख़ुदा का हर फै़सला मुझे मंजूर है, इंसानों की अब परवाह नहीं
मैं खुश हूँ बहुत खुश और मेरा साथ देना, हाथ छुड़ा कहीं जाना नहीं
" मेरा भी घर "
काश मेरा भी कोई घर होता
सुबह उठते ही घंटी की आवाज़ गूंजती
दिन दोपहर किलकारियां गूंजती
शाम ढलते पंछी लौटते
रात ढले सर छिपाये सब साथ होते
बस यही एक छोटा सा सपना है
काश कभी ये पूरा हो पाता
रिश्ता जिससे जुड़ा
काश कभी दिल भी मिल पाता
" सच से सामना "
चेहरे को देर तक दोनों हाथों के बीच में
रख कर बहुत सोचा, बहुत रोई।
बस इतना समझ में आया कि इस जीवन का कोई अर्थ नहीं, निरर्थक है ये।
किसी काम या किसी चीज के लायक नहीं हूँ
आज समझ लिया और आभास भी कर लिया
बहुत दुःख हुआ जब लाखों की भीड़ में
ख़ुद को बेवकूफ पाया
सच तो यही है,
और हाँ सच से आज सामना कर लिया मैंने
" ज़ख़्मों को अब मत कुरेद "
कभी आँसू कभी ख़ुशी बेची, ना चाहते हुए भी खिलखिलाती रही
तन मन मारा गया, मेरा बचपन नोंचा गया कभी लूटा खसोटा गया
रही बहुत बार ना नुकर करती, कभी धकेलती कभी चेहरा नोंचती
मग़र बद किस्मती से कभी बख़्शी ना गई, तन हर बार बिखेरा गया
घाव तो समय के साथ भर गए मग़र आत्मा छलनी हुई कभी ना भरी
क्या ज़िंदगी भर कीमत चुकानी पड़ेगी इस किरदार और वज़ूद की
अंजाने में सज़ा ये कैसी मुकर्रर की ए ख़ुदा तुमने इस औरत ज़ात की
जाने कब तलक झेलेगी और चुकायेगी परेशानी इस तन के साथ की
अब बस भी कर इन ज़ख़्मों को देना, अब और इन्हें नासूर ना बना
हिम्मत अब जवाब दे गयी है, मत कुरेद इन्हें, अब भर भी जाने दे
चैन से जी नहीं सकती तो कोई बात नहीं, सुकून से मर तो जाने दे
" कोई तो होता "
कोई तो होता जो सिर्फ़ मुझे ही चाहता
कुछ और नहीं सिर्फ़ प्यार ही तो चाहिए
और कुछ ये मन कहाँ कुछ चाहता है
दिल का ये सूनापन उसकी मोहब्बत से ही भर जाता
जानती हूँ किसी का भी प्यार कभी नसीब नहीं होगा
ऐसे ही खालीपन लिए जीना होगा
" मन चाहा साथी "
मुझे जो चाहिए वो इंसां यहाँ कहाँ मिलेगा
मन चाहा साथी वो हमसफ़र कहाँ मिलेगा
साथ देता जो, बस ऐसा साथी चाहिए था
ज़िंदगी के ऐश ओ आराम की तलब किसे
प्यार भरी संग निभाने की झूठी कसमें ही सही
कुछ कहता सुनाता, मेरी सुनना ज़रूरी नहीं था
उसका हर पल साथ रहना ज़रूरी नहीं था
आँखों से ही चूम लेता ऐसा साथी चाहिए था
मग़र ज़िंदगी के मरुस्थल को ख़ुद ही पार करना है
ऐसी जन्मों सी दूरी किस्मत है, बताना चाहिए था
" छाँव "
तपती दुपहरी-सा यह जीवन और तुम शीतल-सी छाँव
उग रहे मन में फफोले हैं, अपने भी ग़ैर और अबोले हैं
कड़ी धूप बरसाती अंगारे, सपनों के झुलस गए पाँव
तपती दुपहरी-सा यह जीवन और तुम शीतल-सी छाँव
नेह हुआ खंड-खंड चूर-चूर, छूट गए सब अपने बहुत दूर
तैरती रही मन के सागर में, उन बिछड़ी यादों की नाव
सागर के तट हुए दुखियारे, सूने हुए खुशियों के गलियारे
क्या करना चाँद के शहर जाकर, भला अपना मिट्टी का गाँव
तपती दुपहरी-सा यह जीवन और तुम शीतल-सी छाँव
" थोड़ी सी बेवफ़ाई "
तकिया के गिलाफ़ आँसुओं से गीले मिलते रहेंगे
वफ़ा तुझसे की, वफ़ा करते हैं और करते रहेंगे
बेशक़ बेवफ़ाई तेरा हक़ था, तूने इस्तेमाल किया
मेरे इश्क़ का तू राजा है, जा मैंने तुझे माफ़ किया
लाख कोशिशों की मुश्किलों के बावज़ूद तुझे पाया था
मग़र तूने आदतन बेवफ़ाई का रास्ता इख़्तियार किया था
क्या मिला तुझे ए तंगदिल बेवफ़ा हमसफर बेवफ़ाई करके
किसी को तू यूँ ही मिल गया मुझसे थोड़ी सी बेवफ़ाई करके
ए सनम कह देता एक बार यूँ ही फ़ना हो जाते तुझ पर
बोलता तो सही प्यार से, तेरे रास्ते से हट जाते मुस्कुरा कर
बहुत घाटे का सौदा किया तूने ए इश्क़ के सस्ते व्यापारी
अब तो दिखाई, आगे कभी ना आज़माना तू अपनी ये होशियारी
मुझ जैसा वफ़ादार जीवनसाथी तुझे कभी नहीं मिलेगा
वक़्त बीतने दे फ़िर देखना, तू मुझे देखने को भी तरसेगा