वो नज़र से दूर तो हे मगर, ये अजीब सूरते हाल हे
हम वक्त पेशे नज़र भी हे, न फिराक हे न मिसाल हे
ये तुम्हारी तलख नवैयाँ, कोई और सह के दिखा तो दे
ये जो मुझमे तुझमे निबाह हे, मेरे हौसले का कमाल हे
जो गुज़र रही हे गुज़र दो, न बुरा कहो न गिला करो
जो तुम्हारा हाल हे दोस्तों, वही सारे शहर का हाल हे
तेरे मशवरे के कुलूस पैर, मुझे तरके इश्क कुबूल हे
मगर एक बात हे हम नशीं, मेरी ज़िन्दगी का सवाल हे
सोमवार, 25 मई 2009
रविवार, 19 अप्रैल 2009
आए नज़र बस तू...
मौसम मौसम तेरी चाहत का सन्देसा हे,
आहट आहट तेरे आने का अन्देसा हे,
हर खुशबू से आती हे अब तेरी ही खुशबू,
मंज़र मंज़र आलम आलम आए नज़र बस तू...
आती जाती सांसों में हे दर्द भरी हलचल,
कटे से नहीं कटता हे ये तन्हाई का पल,
पागल पागल रहती हे मेरी तो हर धड़कन,
बस तेरे दीदार का छाया मुझपर पागलपन...
आहट आहट तेरे आने का अन्देसा हे,
हर खुशबू से आती हे अब तेरी ही खुशबू,
मंज़र मंज़र आलम आलम आए नज़र बस तू...
आती जाती सांसों में हे दर्द भरी हलचल,
कटे से नहीं कटता हे ये तन्हाई का पल,
पागल पागल रहती हे मेरी तो हर धड़कन,
बस तेरे दीदार का छाया मुझपर पागलपन...
बुधवार, 8 अप्रैल 2009
मैं सपनों में खोने लगा हूँ....
तेरी दस्तक से ज़िन्दगी जीने लगा हूँ,
जाम खुशियों के अक्सर मैं पीने लगा हूँ,
बरसोगे मोहब्बत का बादल बनकर,
पल पल मैं सपनों में खोने लगा हूँ....
जाम खुशियों के अक्सर मैं पीने लगा हूँ,
बरसोगे मोहब्बत का बादल बनकर,
पल पल मैं सपनों में खोने लगा हूँ....
रविवार, 5 अप्रैल 2009
ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ...
तेरी आँखों के आंसुओं को पीना चाहता हूँ,
तेरे हर ज़ख्म को सीना चाहता हूँ,
तेरे आने से सांसे चल पड़ी हैं,
मैं अब ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ...
तेरे हर ज़ख्म को सीना चाहता हूँ,
तेरे आने से सांसे चल पड़ी हैं,
मैं अब ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ...
गुरुवार, 2 अप्रैल 2009
एक पत्थर को देखा.....
"एक पत्थर को देखा.....,
मैंने करीब जाकर.
समझना चाहा जो उसकी ज़िन्दगी को,
बहुत दुःख हुआ मुझे,
पत्थर को तन्हा पाकर."
मैंने करीब जाकर.
समझना चाहा जो उसकी ज़िन्दगी को,
बहुत दुःख हुआ मुझे,
पत्थर को तन्हा पाकर."
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