सुबह सुबह जब उसने ली अंगड़ाई
गालों पर उसके जैसे छाई अरुणाई
आदित्य ने गालों से जुल्फ़ें सिमटाई
चहुँ और लालिमा अपनी है बिखराई
देख पवन भी उन्मुक्त गगन में मानो
उसकी ज़ुल्फ़ों की छटा ने घटा फैलाई
हैरान हूँ मैं ये सोचकर कि मालिक ने
क़ायनात् कितनी फ़ुर्सत से है बनाई
जाने क्या उसके मन में समाई और
उसने ये प्रकृति हमारे लिए बनाई
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