वो रात सुहानी ढल गई
प्यार की धूप भी ढल गयी
बहुत गुमां था प्यार पर
ये भ्रम भी दूर कर गयी
कभी प्यार का सूरज
चढ़ा था परवान अब वो
प्यार की धूप भी ढल गयी
दूर हुई सब ग़लतफहमियाँ
रात आई लेकर अब दूरियाँ
फैला अंधियारा ढली रोशनी
जब पहली बार मिली थी तुमसे
तुम कहते थे चाँदनी मुझसे
कभी कहते परिधि और
कभी कहते प्यार से बुलबुल
भूली सब प्यारी बातें वो
अब कहते हो मुझे सिर्फ़ मनहूस
क्या कहूँ किसी से जबकि
जानती हूँ मैं कि तुम्हारे
प्यार की धूप अब ढल चुकी
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