बुधवार, 1 जुलाई 2009

तुम ही से मेरा चाँद खिले..........

तुम ही से मेरा चाँद खिले
तुम ही से चांदनी मिले
तुम ही से सुबह हो मेरी

तुम ही से मेरी शाम ढले
तुम ही से महके हर कली

तुम ही से हर फूल खिले
तुम ही तो अपने हो मेरे

तुम ही से हैं सुबह गिले
तुम ही तो चाहत हो मेरी

तुम ही से मेरा दिल मिले
तुम ही से ज़िन्दगी है मेरी

तुम ही से हैं यह सिलसिले
जब तुझ ही से मुझे सुब कुछ मिले

फिर क्यों न मुझ को तुम मिले?

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