शुक्रवार, 25 जून 2021

सालगिरह

आज ही के दिन मैंने तुम्हें पाया 

और पाया था तुमने मुझे l

बीते ग्यारह वर्ष विगत मानो, 

बीते हों ग्यारह जनम जानो.

खड़े थे हम तुम सजे इक दूजे के विमुख, 

चहुँ ओर थी भीड़ और छाई थी खुशहाली, 

कहीं बजा रहा था गीत और कहीं संगीत, 

फिर भी मन में भरा था जाने कितना दुख l

खड़ी थी तुम्हारे सम्मुख फिर भी खड़ी ना थी, 

जाने किन विचारों में थी खोई.

आँखें और मन हो व्याकुल ढूंढ रहे थे माँ को, 

जो आत्मा से मेरे पास थी, पर शरीर से मेरे पास ना थी.

मन भरा हुआ था अगिनत पीड़ा और दुख से, 

नहीं कह पा रही थी कि बाबुल मत भेजो अपने आंगन से, 

भरी और डबडबाई आँखें देख रही थी बाबुल को, 

और एक पल देखती थी प्रियवर को l

मन चिंता और शंकाओं के सागर में गोते लगाता था, 

कि क्या यह समझेगा मुझे और जन्मों के हमारे रिश्ते को l

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