ये टूटी दिखती औरतें अंदर से बहुत मजबूत होती हैं l
इनकी सहनशीलता औरों से अद्द्भुत अद्वितीय होती है l
मन में उठते बैठते भावों को ढकने में ये माहिर होती हैं l
हरदम हरपल टूटते ख्वाबों को दिल में ही दफ़न करती हैं l
एक कब्रगाह मन में और बाहर चमन रखती हैं l
बाहर से दिखती तितली जैसी और अंदर से लाश ढोती हैं l
कभी थी पापा की लाड़ली अब मनहूस कहलाती हैं l
कभी पलकों पर रहने वाली अब रोज़ पीटी जाती हैं l
महलों में रहने वाली अब रोज़ घर से निकाली जाती हैं l
खुद कभी राम बन ना सकोगे मुझमें सीता ढूंढी जाती हैं l
चलती रहेगी ऐसे ही क्यों किसी से ना ये बदली जाती है l
कितनी ही आई और चली गयी ये कहानी यूँ ही चलती जाती है l
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