जाने को तो सब बिन मुहूर्त के ही मेरी ज़िंदगी से चले गए
ना कुछ कहा, ना कुछ सुना, ना कभी कुछ बताया
चुपचाप ही ज़िंदगी से हथेली पर रेत की तरह फिसल गए
मौत ने अलविदा कहने का मौका तक ना मुझे दिया
सच है ये कि जाने वाला लौट कर कभी नहीं आया है
लेकिन जब कोई बता कर जाता है कि अच्छा अब मैं जाता हूँ
तुम खुश रहना, तुम्हें अभी बहुत लंबा सफ़र तय करना है
तब कलेज़ा फट जाता है एक अश्रुधारा अनायास ही बह जाती है
जो बिन कुछ कहे चले गए, उन्हें भी ना रोक सकी थी
जो बोल कर जाने को अलविदा कह रहें हैं उन्हें कैसे रोकूँ
नाराज़ हो कर जाने वाले को भला कब कौन रोक सका है
सोचती हूँ इस दिल पर पत्थर ही रख लूँ अब शायद
जाने कितनों को बेवज़ह जाते हुए बस मुझे देखते रह जाना है
कलेज़ा फट कर रह जाता है, दुनिया बेगानी बेमानी हो जाती है
जाने वालों की यादें रह जाती हैं, यादें ही वक़्त बेवक़्त आती हैं
ऐसा लगता है कि आसमान फोड़ दूँ या धरती का सीना चीर दूँ
बस कुछ भी ऐसा करूँ जिससे गए हुए लोगों को वापस ला दूँ
अब कैसे मैं उन्हें पुकारूँ और कैसे अपना हाल समझाऊँ