रात गयी सो बात गयी, शब्दों से कैसे आपको समझाऊँ,
मन में पुरानी यादों और इंसानों को लेकर कोई मोह नहीं
आप समझते हैं मन में अब भी उन्हें लेकर कोई आस रही
मैं अपनी बात शब्दों से समझाने में हमेशा असफल ही रही
वो एक बीता हुआ कल है, वापस उस कल में मुझे जाना नहीं
मेरी बातें सुन कर कितने प्यार से आसानी से पूछ लिया कि
"मैं सब ठीक कर दूँ", इन चंद शब्दों में क्या क्या नहीं समेट लिया
प्यार, समर्पण, लगाव, स्नेह, त्याग, आस सब कुछ उड़ेल दिया
इस बात पर कितनी व्याकुल हो गयी थी मैं कैसे समझाऊँ
कि मेरी किस्मत ख़राब रही और उनकी नीयत ख़राब रही
वो इंसान ही नहीं हैं इस लायक कि कभी प्यार को समझ पाते
आगे जो हो उसके लिए तैयार हूँ, मुझे ग़लत कभी करना नहीं
बहुत सहन किया, वापस उस नरक में मुझे अब कभी जाना नहीं
जो करते रहे अगर वो सही था, जो मैं कर रही हूँ वो भी ग़लत नहीं
ख़ुदा का हर फै़सला मुझे मंजूर है, इंसानों की अब परवाह नहीं
मैं खुश हूँ बहुत खुश और मेरा साथ देना, हाथ छुड़ा कहीं जाना नहीं
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