मुझे जो चाहिए वो इंसां यहाँ कहाँ मिलेगा
मन चाहा साथी वो हमसफ़र कहाँ मिलेगा
साथ देता जो, बस ऐसा साथी चाहिए था
ज़िंदगी के ऐश ओ आराम की तलब किसे
प्यार भरी संग निभाने की झूठी कसमें ही सही
कुछ कहता सुनाता, मेरी सुनना ज़रूरी नहीं था
उसका हर पल साथ रहना ज़रूरी नहीं था
आँखों से ही चूम लेता ऐसा साथी चाहिए था
मग़र ज़िंदगी के मरुस्थल को ख़ुद ही पार करना है
ऐसी जन्मों सी दूरी किस्मत है, बताना चाहिए था
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें