सोमवार, 6 दिसंबर 2021

" मेरा भी घर "

काश मेरा भी कोई घर होता

सुबह उठते ही घंटी की आवाज़ गूंजती

दिन दोपहर किलकारियां गूंजती 

शाम ढलते पंछी लौटते

रात ढले सर छिपाये सब साथ होते

बस यही एक छोटा सा सपना है

काश कभी ये पूरा हो पाता

रिश्ता जिससे जुड़ा 

काश कभी दिल भी मिल पाता

कोई टिप्पणी नहीं: