गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

" कैसा ये इश्क़ है "

आदत नहीं बस तुम मेरी ज़रूरत हो

ऐसा बोल कर दरवाज़ा बंद करवा देते हो


बिन देखे बिन बात करे रह नहीं सकते हो

और मुझे मोहब्बत ना करने का मश्विरा देते हो


इश्क़ और ज़रूरत में बहुत थोड़ा ही अंतर है

तुम्हें मुझसे मोहब्बत है मुझे इश्क़ की मनाही है


ज़वाब मांगते हो मुझसे कि क्या मुझे तुमसे इश्क़ है

और कहते भी हो कि मुझे तुमसे इश्क़ नहीं करना है


ये कैसी अजब दुविधा है, तुम्हें अपना नहीं कह सकती

तुम अपना नहीं सकते और मुझे किसी और का होना नहीं है


" चिठ्ठी तेरे नाम की "

एक चिठ्ठी तेरे नाम की, प्यार भरे पैग़ाम की

नज़र करती हूँ तुझे, आवाज़ सुनो धड़कन की


करती हूँ इल्तिज़ा तुमसे, आओ अब थाम लो मुझे

बहती हूँ तेरे इश्क़ में, पनाह दो अपनी बाहों में मुझे


" क्या लिख दूँ "

इस कोरे काग़ज़ पर क्या लिख दूँ

प्यार लिख दूँ या बेरुखियां लिख दूँ

दीदार लिख दूँ या इंतज़ार लिख दूँ

इश्क़ लिख दूँ या नफ़रतें लिख दूँ

धोखा लिख दूँ या ऐतमाद लिख दूँ

तू ही बता, दिल ए जान लिख दूँ या

तुझे मेरी रूह का क़ातिल लिख दूँ

अब तू ही बता मैं तुझे क्या लिख दूँ

वफ़ादार हमसफ़र लिख दूँ या तुझे

खुली आँखों से देखा धोखा लिख दूँ


" हमसफ़र कहाँ मिलेगा "

मुझे जो चाहिए वो इंसां यहाँ कहाँ मिलेगा

मन चाहा साथी वो हमसफ़र कहाँ मिलेगा


साथ देता जो, बस ऐसा साथी चाहिए था

ज़िंदगी के ऐश ओ आराम की तलब किसे


प्यार भरी संग निभाने की कसमें, झूठी ही सही

कुछ कहता सुनाता, मेरी सुनना ज़रूरी नहीं था


उसका हर पल साथ रहना ज़रूरी नहीं था

आँखों से ही चूम लेता ऐसा साथी चाहिए था


मग़र ज़िंदगी के मरुस्थल को ख़ुद ही पार करना है

ऐसी जन्मों सी दूरी किस्मत है, बताना चाहिए था


" छल से भरा "

हर सागर जल से भरा है

हर इंसान दुनिया में 

छल से भरा है 

नहीं पहचान होती

इनकी किसी से, 

अजब कशिश और मिठास

होती इनकी बातों में,

पहचान ना सकोगे

आसानी से

दिल जीत लेते बहुत जल्दी

अपनी बेमानी से, 

ज़ज़्बातों से खेल

आसानी से चल देते, 

अपना सा मुँह लेकर हम

ठगे से बैठे देखते रह जाते!!


" काश! वक़्त रुक जाता "

बहुत प्यारे लम्हें थे वो,

काश! वक़्त रुक जाता, 

जिनमें हम तुम साथ थे, 

ना तुम्हें कोई शिकवा था

ना मुझे कोई शिकायत थी

मग़र जाने क्या हुआ अचानक

तुम बिन बात ही रूठ गए

लाख मना लूँ, जानती हूँ

वापस आने के लिए नहीं गए हो!!!


" ज़िंदगी की कश्ती में "

हर इंसान सवार है ज़िंदगी की कश्ती में

मग़र मंज़िल सबकी अलग अलग है

ना मालूम है किसी को भी अंत तक

कि किसका सफ़र कहाँ तक है और

ना किसी को अपनी मंज़िल की ख़बर है

बेशक़ ज़िंदगी की कश्ती में सब सवार हैं

सब अंजान मंज़िल की तरफ़ सफ़र में हैं


" कैसे भुलाऊँ तुझे "

मेरे रोम रोम में बसती हो, कैसे भुलाऊँ तुझे

मोहब्बत की सरहदों को पार कर तुझे पाया

हमेशा मेरे दिल की गहराईयोँ में रहती है तू

कैसे दिल की गहराई से तुझे निकाल भुला दूँ

समझ लो ग़र समझ सकती हो मुझे तुम

जीवन भर रह नहीं सकता तुम्हारे बिना मैं

कैसे भुलाऊँ तुम्हें, कोई सूरत नहीं दिखती

इश्क़ है और हमेशा रहेगा तुमसे मुझे

चाहे जो हो जाए, भुला नहीं सकता कभी तुझे

कभी तन को आत्मा से अलग जिंदा देखा है? 

फ़िर कैसे मैं तुम्हें भुला कर ज़िंदा रहूँ?


सोमवार, 6 दिसंबर 2021




 


 

" आख़िरी बार माफ़ कर दो "

तुम कहते हो कि "मुझे आख़िरी बार माफ़ कर दो"

मग़र कैसे माफ़ कर दूँ, सपनों के बेरहम हत्यारे को

मेरी रूह से माफ़ी की उम्मीद ना करो, बेहतर होगा

रूह छलनी है, जिस्म बिखरा हुआ, मरे हैं ज़ज़्बात

तू ही बता ऐ क़ातिल, तेरी ख़ता कैसे माफ़ कर दूँ 

ग़लती की माफ़ी होती है, गुनाहों की नहीं, फ़िर कैसे

खुदा भी माफ़ नहीं करता ऐसी ग़लती, फ़िर मैं कैसे

गुनाह जो तूने किये, माफ़ कभी नहीं किये जायेंगे

देखना तू भी वो मंज़र सज़ा का, वो भी होगा वहीं

तड़पन और बिखरन तू ख़ुद में तब महसूस करेगा

वो फ़ैसला उसका भी भयानक से भयानक रहेगा

बस तू तैयारी में रह अब, फरमान तेरे नाम का है

उसके दरबार में पेशी तेरी कहीं किसी रोज़ अब होगी

कोई फ़रियाद चीख़ पुकार अब काम ना तेरे आयेगी

सोच ले, बख़्शा हरगिज़ ना अब तू कभी जायेगा

ए आदम, जान ले तेरी ज़ात ने बहुत धोख़ा दिया

समेट ले अब सब, तेरी डोली निकाली जायेगी

कोई विदाई गीत ना अब कोई तेरी सखी गायेगी,

बिन मुहूर्त के तेरी डोली अब निकाली जायेगी

माफ़ी मुझसे नहीं उससे मांग, रज़ा उसकी मानी जायेगी


" मिलन की प्यास "

तड़प बेहिसाब, तन्हाई बेहिसाब

मिलन की प्यास भी है बेहिसाब

क्या करे बेचैन दिल है मेरा यूँ

तड़प मिटती नहीं तेरी यादों से

किसी शाम सोचूँ तुझे और तू आ जाए

आँखें बंद करूँ तो दीदार तेरा हो जाए


" पीछे छूटी चीज़ें "

पीछे छूटी हुई तमाम चीज़ें

अनमनी दोपहरियां

अंधेरे के दीप्त क्षण

फिर याद आने लगे हैं

वे लयात्मक हंसी की बातें

कपसीली सांझ के उतरते अर्थ

अब भी थर-थराती तीन पहर झील में

दूरी के विष का इतिहास रच रहे हैं

अरण्यक दृष्टि संपन्ना

तपस्विनी का धैर्य सराहनीय है

जिसने विगत महाभारत में

किसी को अभिशाप नहीं दिया

उन तमाम कसैले अनुभवों को

अपने अंतर में समेट काग़ज़ पर उतार

होंठों से हँस दिया


" काफी नहीं है "

क्यों नहीं जी पाती हूँ

तमाम खुशियाँ छिपाये

हर उन क्षणिक पलों को

जो यूँ ही गुज़र जाते हैं ज़िंदगी में

कभी बन जाते कल्पना

कभी हो जाते सपने

मग़र फ़िर भी रहते हैं

सिर्फ़ मेरे और मेरे अपने

क्या यही एहसास काफी नहीं है

खुश होने के लिए? 

सब कुछ खोने के बाद

जिंदा हूँ मैं इतना काफी नहीं है


" वर्जित फल "

वर्जित फल चखना

कितना मीठा लगता है

जबकि नहीं जानते कि

उसके असीम फीकेपन की

एक भी फांक

गले से उतरनी

उतनी ही कठिन होगी

जितनी की

वर्जित फल को चखने से

ख़ुद को रोकना!!