सोमवार, 6 दिसंबर 2021

" पीछे छूटी चीज़ें "

पीछे छूटी हुई तमाम चीज़ें

अनमनी दोपहरियां

अंधेरे के दीप्त क्षण

फिर याद आने लगे हैं

वे लयात्मक हंसी की बातें

कपसीली सांझ के उतरते अर्थ

अब भी थर-थराती तीन पहर झील में

दूरी के विष का इतिहास रच रहे हैं

अरण्यक दृष्टि संपन्ना

तपस्विनी का धैर्य सराहनीय है

जिसने विगत महाभारत में

किसी को अभिशाप नहीं दिया

उन तमाम कसैले अनुभवों को

अपने अंतर में समेट काग़ज़ पर उतार

होंठों से हँस दिया


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