मेरे रोम रोम में बसती हो, कैसे भुलाऊँ तुझे
मोहब्बत की सरहदों को पार कर तुझे पाया
हमेशा मेरे दिल की गहराईयोँ में रहती है तू
कैसे दिल की गहराई से तुझे निकाल भुला दूँ
समझ लो ग़र समझ सकती हो मुझे तुम
जीवन भर रह नहीं सकता तुम्हारे बिना मैं
कैसे भुलाऊँ तुम्हें, कोई सूरत नहीं दिखती
इश्क़ है और हमेशा रहेगा तुमसे मुझे
चाहे जो हो जाए, भुला नहीं सकता कभी तुझे
कभी तन को आत्मा से अलग जिंदा देखा है?
फ़िर कैसे मैं तुम्हें भुला कर ज़िंदा रहूँ?
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