मैंने कब कहा था तुमसे मुझे उपहार चाहिए
मैंने कब कहा था तुमसे मुझे श्रृंगार चाहिए
मैंने कब कहा था तुमसे मुझे फूलों का हार चाहिए
मैंने कब कहा था तुमसे मुझे महलों का राज चाहिए
मैंने कब कहा था तुमसे मुझे ऐशोआराम चाहिए
मुझे नहीं चाहिए तुमसे कोई महल धन दौलत
मुझे तो बस प्यार से सींचा हुआ घर परिवार चाहिए
मुझे तो बस हर पल तुम्हारा साथ अपने साथ चाहिए
मुझे तो बस हर पल तुम्हारा संग सहारा अधिकार चाहिए
तुम्हें बस अपना कह सकूँ इतना सा अधिकार चाहिए
मुझे तो बस अपने लिए तुमसे थोड़ा सा प्यार चाहिए
सोमवार, 28 जून 2021
मैंने कब कहा था
रविवार, 27 जून 2021
औरों की तरह मुझे भी
सबसे अलग सबसे जुदा थी
मौन अलग और बोल अलग
ख़ुद की हर बात पे फ़िदा थी
तुम नहीं समझोगे
तुमने देखा ही कहाँ
कभी मेरी तरफ़ मुड़कर
देखते तो पाते मुझे अलग
औरों की तरह मुझे भी
ग़लत समझ लिया तुमने
अब वक़्त नहीं है
समझने समझाने का
अब जियो तुम अलग
और मैं अलग
ज़िंदगी एक साज़
कहना नहीं किसी से
मांगना नहीं किसी से
साथ मांगेंगे तो सौदा करेंगे
बिताए पलों का हिसाब करेंगे
गले लग कर गला काटने का रिवाज़ है
बच कर रहना हर बगल और हर ज़ुबान में
छुरी रखने का रिवाज़ है
अकेले ही चलो तो ज़िंदगी एक साज़ है
ऐ कामयाबी
तुम्हें छूकर देखना है
मुझे ये मोजिज़ा देखना है
क्यों तुझे पाकर इंसान
अक्सर अपने होश खो देता है
दिल पर वार
तुम्हारी बातें मेरे दिल पर खंज़र से वार करती हैं
घाव बेशक़ गहरे हों मग़र नासूर बना देती हैं
आँख केआँसू
ज़िंदगी कुछ ऐसे दौर में आ गयी है कि
गालों से लुढ़कते आँसुओं को छिपाना है
पानी भले ही आँखों में तैर जाए लेकिन
ध्यान रहे बाहर ना आने पाए
इन्हें समझा दिया है मैंने कि भीड़ में नहीं
अकेले में ही मिलने आया करो
कोई आँख केआँसू पी जाता
ऐसी मेरी तकदीर नहीं है
तक़दीर बड़ी किस्मत वालों की हुआ करती है
तब ना दिल टूटता ना आँख रोती
टूटी हुई औरतें
ये टूटी दिखती औरतें अंदर से बहुत मजबूत होती हैं l
इनकी सहनशीलता औरों से अद्द्भुत अद्वितीय होती है l
मन में उठते बैठते भावों को ढकने में ये माहिर होती हैं l
हरदम हरपल टूटते ख्वाबों को दिल में ही दफ़न करती हैं l
एक कब्रगाह मन में और बाहर चमन रखती हैं l
बाहर से दिखती तितली जैसी और अंदर से लाश ढोती हैं l
कभी थी पापा की लाड़ली अब मनहूस कहलाती हैं l
कभी पलकों पर रहने वाली अब रोज़ पीटी जाती हैं l
महलों में रहने वाली अब रोज़ घर से निकाली जाती हैं l
खुद कभी राम बन ना सकोगे मुझमें सीता ढूंढी जाती हैं l
चलती रहेगी ऐसे ही क्यों किसी से ना ये बदली जाती है l
कितनी ही आई और चली गयी ये कहानी यूँ ही चलती जाती है l
ज़िंदगी की अदालत
एक रोज़ ज़िंदगी की अदालत में तेरी पेशी होगी
तेरी उसकी आमने सामने मुलाक़ात होगी
कर्म का लेखा जोखा तेरा होगा सज़ा उसकी होगी
गुनाह तेरे होंगे तो सज़ा भी तुझे झेलनी होगी
बिन मुहूर्त के अदालत की तारीख मुक़र्रर होगी
वकालतनामा भी दे ना सकोगे सिर्फ पेशी तुम्हारी होगी
सवाल जवाब तुमसे होंगे मर्ज़ी उस खुदा की होगी
वक़्त है संभल जा वरना देरी भी जल्दी में तब्दील होगी
ज़िंदगी की अदालत में जल्दी ही तेरी पेशी होगी
शुक्रवार, 25 जून 2021
मेरा चाँद
वो कोई और बात थी
तुमसे मिलना और मिलकर बिछड़ना
कहने को सामान्य सी बात थी l
मिलने का तो ठीक बिछड़ने की वो कोई और बात थी l
कारण जो तुमने दिया सही था
पता नहीं क्यों बार बार ऐसा लगता है कि वो कोई और बात थी l
लौट कर वापस नहीं आये
इसलिए लगता है वो कोई और बात थी l
आते तो कभी ना लगता
कि वो कोई और बात थी l
वो रात
नहीं भूलती कभी वो रात
थी कुछ अलग बाकी रातों से वो रात
ऐसी नहीं थी कोई बड़ी बात
पर जाने कैसे बन गयी बिन बात वो बात
नहीं कही जाती थी किसी से
दिल पर लगी थी एक बड़ी घात
अनायास नहीं था शायद कुछ भी
शायद बिछाई थी तुमने पहले से कोई बिसात
नहीं जानती थी मैं यह सब
लगा था दिल को एक बड़ा आघात
नहीं भूलेगी ना हि मिटेगी
दिल ओ दिमाग़ से वो एक रात....
ऐ मेरे प्यारे बिस्तर
तुम सा ना कोई सच्चा हमसफर ऐ मेरे प्यारे बिस्तर,
सुकून मिलता है जब मिलते हम तुम गले लगकर l
जब रहता दिल दिमाग़ चलयमान और विचलित,
तब नहीं सूझता कुछ भी किंचित् l
निंदिया रानी भी रहती आँखों से कोसों दूर,
और ख्यालों में ही चलते, जाने निकल जाते कितनी दूर l
नींद ना होती पूरी जब भी, दिल भी रहता हरदम बेचैन,
आँखों में छाती लालिमा नहीं रहता शरीर को भी जुनून,
जब सोते आकर तुम पर, तब आता तुम को भी सुकून l
करना चाहते तब तुम बातें, पर निंदिया ले जाती मुझको,
तुमसे सपनों में बहुत दूर........
तुम सा ना कोई सच्चा हमसफर ऐ मेरे प्यारे बिस्तर.....