कुछ डरी हुई सी आहें हैं
कुछ सहमी हुई सी चाहतें हैं
कैसे कहें कि तुमसे कितनी मोहब्बतें हैं
रिश्ता पलों का नहीं जन्मों का है तुमसे
रिश्ता अधूरा रहने की आहें हैं
रात भर नींद नहीं आती और जलती आहें हैं
डर है कहीं खो ना दूँ तुम्हें
सहमती हूँ कैसे रहूंगी तुम बिन
रात के काले गहरे अंधियारे में
जब सिसकती हैं ये आहें
आवाज़ नहीं करती लेकिन
ये कलेज़ा चीर देती हैं रात का
कैसे बताएँ तुम्हें कि कितने
खंज़र जिग़र के पार होते हैं
किस से कहें किस से नहीं यही उहापोह आहें हैं
रिश्ता जन्मों का नहीं तोड़ना है
कैसे कहूँ तुमसे कितनी चाहतें हैं
पूरी नहीं हुई जो चाहतें वही तो मेरी आहें हैं
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