बुधवार, 14 जुलाई 2021

कुछ डरी हुई सी आहें

कुछ डरी हुई सी आहें हैं

कुछ सहमी हुई सी चाहतें हैं

कैसे कहें कि तुमसे कितनी मोहब्बतें हैं

रिश्ता पलों का नहीं जन्मों का है तुमसे

रिश्ता अधूरा रहने की आहें हैं

रात भर नींद नहीं आती और जलती आहें हैं

डर है कहीं खो ना दूँ तुम्हें

सहमती हूँ कैसे रहूंगी तुम बिन

रात के काले गहरे अंधियारे में

जब सिसकती हैं ये आहें

आवाज़ नहीं करती लेकिन

ये कलेज़ा चीर देती हैं रात का

कैसे बताएँ तुम्हें कि कितने

खंज़र जिग़र के पार होते हैं

किस से कहें किस से नहीं यही उहापोह आहें हैं

रिश्ता जन्मों का नहीं तोड़ना है

कैसे कहूँ तुमसे कितनी चाहतें हैं

पूरी नहीं हुई जो चाहतें वही तो मेरी आहें हैं

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