किसी के आँसुओ का पर्बत पिघला गयी होगी
कभी दिल के खंडहरों में जाकर बैठ गयी होगी
दूर बैठी देखती होगी अरमानों को सिराते हुए
सोचती होगी कितने टूटे और कितने जाते हुए
नाज़ुक रिश्ते हैं ये आज नहीं तो कल टूटेंगे
ज़िंदगी एक मेला है इसमें कितने कब छूटेंगे
कोई निभा ना पाया साथ दिलों का भी गया
कुछ वादे कुछ कसमें देकर थोड़ा ठहराव पाया
ठहराव कुछ पलों का था स्थिरता नहीं ला पाया
2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर
Bahut Shukriya aapka :-)
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