Khoobsurat alfaazon ka safar.....
मेरी हर नज़्म का सार तुझ से है
तू ही अध्याय और पर्याय तू ही है
कैसे झुठला दूँ तुझे तू ही बसा है
सँवार लूँ तुझे अलंकारों से कर लूँ
सुसज्जित और गुनगुना हर घड़ी लूँ
बढ़िया
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1 टिप्पणी:
बढ़िया
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