सोमवार, 6 दिसंबर 2021

" यथार्थ "

अनेक बार

यथार्थ की आँखों से

मंज़िल को बहुत पास से देख

मन मचल उठता है, 


पास जाने पर, जाने क्यों

दूर छिटक जाती है वह

ठीक उसी तरह जैसे

पत्ते पर रखी ओस का फिसलना

चाहकर भी ना पकड़ पाने की

नाउम्मीद हृदय को झकझोरती है, 


और शायद कहना चाहती है

कोशिशें अभी और बाकी हैं

अंजाम वक़्त के पिंजरे में

भविष्य की तरह आज भी क़ैद है !


" दिल अक्सर रोया "

मैंने तो यह देखा है

कि मैं जब भी मुस्कुरायी हूँ

मेरा दिल अक्सर रोया है

दुनिया के जागरण में, 

सारी उम्र बैठ कर भी

चुपचाप अकेला सोया है

नहीं जानती

सुप्त अवस्था का सच, 

सच है या जागने का सच, 

इतना कुछ काटने के बाद भी

बहुत कुछ बोया है!!


"ख़ामोशी "

आज फ़िर एक बार उसी ख़ामोशी ने

उसी ख़ामोशी से मेरा दामन पकड़ा

शायद शब्दों की कमी पड़ गयी

तुम्हें समझाने को, 

तुम चुप रहकर भी

कुछ कह गए उस ख़ामोशी में

एक पल के लिए ख़ामोश हो गयी

मेरी ज़िंदगी उसी ख़ामोशी में!


" रिश्ता "

एक रिश्ता जो अभी बन रहा था

टूटने लगा बनने से पहले

एक सहारे से उठते थे हम

गिर गए मग़र संभलने से पहले! 

जलाने लगे जो उम्मीदों के चिराग़

बुझा दिए गए जलने से पहले! 

सीखने लगे थे आप से मुस्कुराना, 

रुला दिया हमें हँसने से पहले! 

भिक्षा के लिए जो हमने झोली फैलायी, 

खींच लिया हाथ कुछ देने से पहले! 

परिभाषा जीवन की खोजने जो निकले,

ज़िंदगी छिन गयी जीने से पहले! 

एक महल बनाया सपनों की दुनिया में, 

गिर गया नींव रखने से पहले! 

क्या यही अर्थ होता है रिश्तों का, 

टूटना होता है इन्हें बनने से पहले!


" प्रतीक्षारत हूँ "

सरिताओं का सागर

गहरा उमड़ा था

जब देखा था तुमने

स्नेहिल आँखों से

चाहती थी डूब जाऊँ उनमें

परंतु नहीं पा सकी

तुम्हारा वह अस्तित्व

फ़िर प्रतीक्षारत हूँ

इसलिए आज तक

शायद मिलोगे कभी तो

स्वप्न में या ख्यालों में

एक अस्पष्ट-सी

परछाईं बनकर!


" लगाव है "

मैं उदासीन हूँ

हर उस चीज़ के प्रति

जो सिर्फ़ देती है दिखाई

जिसमें नहीं होती

भावनाओं को

कुरेदने वाली गहराई

मेरा लगाव है 

हर उस चीज़ से

जो सिर्फ़ दिखती ही नहीं

महसूस भी होती है

दिल के किसी कोने में

यदि तुम भी वही हो

जो महसूस किये जाते हो

तो बेशक़

तुमसे मेरा लगाव है!


"आँसू "

आँसू एक प्राकृतिक मरहम है

दिल में लगी चोट के लिए

उससेे उत्पन्न दर्द के लिए

औरत के लिए, मर्द के लिए

बच्चों के लिए, वृद्ध के लिए

सुख के लिए, दुःख के लिए

पर के लिए, ख़ुद के लिए! 

जब यह तरल मरहम

आँखों से निकलकर

कपोल की पगडंडी से

वृहत " सीनाक्षेत्र " में

प्रवेश करता है

तब ठंडक पहुँचती है

दिल में राहत मिलती है

और फिर होता है बोझ हल्का

एक हद तक भूलते हैं

हम ग़म कल का!


" बाबूजी "

बचपन में जब छोटी थी और थोड़ी सी मोटी थी

कभी पिताजी कभी बाबूजी कह उन्हें पुकारा करती थी

मेरे छोटे गुदगुदे हाथों को अपने मजबूत हाथों में थाम

वो कभी सैर को और कभी बाज़ार ले जाया करते थे

अनगिनत चीज़ें दिलाया और खिलाया करते थे

उन दिनों हम कितने अमीर हुआ करते थे

पिता का साया माँ का प्यार ही असीम दौलत होती थी

उन दिनों इस बात की कहाँ समझ थी, साथ समझ आता था

अब समझ आया है जब वो पास नहीं हैं

पिता का साया क्या होता है माँ की ममता क्या होती है

हमारी तो दुनिया माँ से शुरु और पिता पर खतम होती है

इन दिनों की कभी कल्पना भी नहीं की थी लेकिन गुज़ार रहें हैं

उनके बिना ज़िंदा तो हैं बस जीवन काट रहें हैं

हो जाती कभी बहुत व्याकुल, तब सत्य अपनाया नहीं जाता है

बीत रहे दिनों की कभी कल्पना नहीं की थी लेकिन बिता रहें हैं

उनके बिना ज़िंदा तो हैं लेकिन बस दिन बीत रहें हैं

जाते ही उनके खत्म हुए सब रिश्ते नाते और मायने

छूटे टूटे सब रिश्ते थे झूठे, जो कहते कभी हम जान हैं उनकी

कोई याद नहीं, कोई बात नहीं, कोई पुकारता नहीं है अब

बस जीये जा रहें हैं चले जा रहें हैं, मंज़िल का पता नहीं पर

बेमन्ज़िल ही सफ़र पर चल पड़े हैं बेमकसद चल रहे हैं

किसे कहें अब बाबूजी और किसे माता कह पुकारें

कैसे काटें अब उनके बिन दिन, जब रहें ना कोई सहारे

पिता आसमान और माँ धरती है दोनों असीम अनंतर

थकते नहीं कभी हारते नहीं बस चलते जाते निरंतर

जितना नमन करूँ कम है, आज फिर मेरी आँखें नम हैं

उन्हें याद कैसे करूँ, भूलते ही कब हम हैं

अपने से ही कहाँ हैं, उनके से ही दिखते हम हैं


"अलविदा "

जाने को तो सब बिन मुहूर्त के ही मेरी ज़िंदगी से चले गए

ना कुछ कहा, ना कुछ सुना, ना कभी कुछ बताया


चुपचाप ही ज़िंदगी से हथेली पर रेत की तरह फिसल गए

मौत ने अलविदा कहने का मौका तक ना मुझे दिया


सच है ये कि जाने वाला लौट कर कभी नहीं आया है

लेकिन जब कोई बता कर जाता है कि अच्छा अब मैं जाता हूँ


तुम खुश रहना, तुम्हें अभी बहुत लंबा सफ़र तय करना है

तब कलेज़ा फट जाता है एक अश्रुधारा अनायास ही बह जाती है


जो बिन कुछ कहे चले गए, उन्हें भी ना रोक सकी थी

जो बोल कर जाने को अलविदा कह रहें हैं उन्हें कैसे रोकूँ


नाराज़ हो कर जाने वाले को भला कब कौन रोक सका है

सोचती हूँ इस दिल पर पत्थर ही रख लूँ अब शायद


जाने कितनों को बेवज़ह जाते हुए बस मुझे देखते रह जाना है

कलेज़ा फट कर रह जाता है, दुनिया बेगानी बेमानी हो जाती है


जाने वालों की यादें रह जाती हैं, यादें ही वक़्त बेवक़्त आती हैं

ऐसा लगता है कि आसमान फोड़ दूँ या धरती का सीना चीर दूँ


बस कुछ भी ऐसा करूँ जिससे गए हुए लोगों को वापस ला दूँ

अब कैसे मैं उन्हें पुकारूँ और कैसे अपना हाल समझाऊँ


" दिल आज मायूस है "

दिल आज मायूस है, वजह ना कुछ ख़ास रही

छोड़ कर जाने वालों की भीड़ चारों तरफ रही


वापस कभी कोई आया नहीं जाने क्या बात रही

लाख पुकारूँ, कोई आवाज़ नहीं आती, सोचती रही


सूनी देहरी, पुरानी चौखट, कब से सूनी ही रही

बस आने वालों की आने की बाट जोहती ही रही


ना कभी कोई आया, मैं भी द्वार पर बैठी ही रही

पथराई डबडबाई आँखें आस में बस खुली ही रही


" इतना कहे "

काश बस वो इतना कहे मुझसे

कि उसे भी मुझसे मोहब्बत है

जितनी मुझे उससे है बेइंतेहा

रहेगी हमेशा चाहे रहूँ मैं जहाँ

कहे कि वो रह नहीं सकता 

बिन मेरे उलझती हैं उसकी साँसें

हक़ है उसका मुझ पर इस्तेमाल करे

जताए कि वो मेरा और मैं उसकी हूँ

उसकी साँसों में महकती ताउम्र रहूंगी

उसे बेपनाह इश्क़ मैं यूँ ही करती रहूंगी


" तुम में रम जाऊँ "

आओ हो जलमग्न तुमसे लिपट जाऊँ मैं, 

रूह से रूह की तरह तुम में समां जाऊँ मैं

परी सी दिखती, तुम्हारा रसपान करूँ मैं,

सदियों से तुमसे मिलन की प्यास लिए मैं

तुमसे मिलकर अपनी प्यास बुझाऊँ मैं,

आओ आज करीब मेरे तुम में रम जाऊँ मैं


" मुझे भी दर्द होता है "

दर्द होता है मुझे भी, मग़र कोई समझता ही नहीं

हमेशा एक नया ज़ख़्म मिलता है सौग़ात में ही सही


कैसे संभाले, इतने हैं कि संभाले संभलते ही नहीं

ज़ख़्म बेहिसाब यूँ मिल जाते हैं जैसे बिन मांगी मुराद


सालों से चल रहा सिलसिला इनका रुकता ही नहीं

जाने कब थमेगा ये रिवाज़ कोई बतलाता भी नहीं


हैरान हूँ देख कर मैं, जाने क्या सभी को सूझती रही

चाहती हूँ दर्द का आभास उन्हें भी हो, मग़र होता नहीं


भूल जाती हूँ हर ज़ख़्म, समेट कर रखना चाहती नहीं

बताना चाहती हूँ कि दर्द मुझे होता है, कह पाती नहीं


" अधूरापन "

अधूरी ख्वाहिशें लेकर कौन जीना चाहता है

मग़र अधूरी ख्वाहिशें लेकर हर कोई जी रहा है


ये अधूरापन ना जीने देता है ना मरने देता है

कैसे बयाँ करें, दिल में एक हुजूम सा उठता है


अधूरी कसक से अक्सर दिल कराह उठता है

ना चैन कहीं ये पाता है, बस बेचैन ही रहता है


दिल दिमाग़ में अधूरेपन को हर कोई ढो रहा है

ना बता पा रहा है ना ख़ुशी से चल पा रहा है


" इंतज़ार का वक़्त "

ठहर जाता है वक़्त, जब मुलाक़ात का वक़्त नज़दीक आता है

लम्हें कटते नहीं, वक़्त गुज़रता नहीं, बस कहीं ठहर सा जाता है


दूरी सही नहीं जाती है, और तुम्हारा भी कोई पैग़ाम नहीं आता है

कैसे कहूँ तुमसे, और देर का फ़ासला मुझसे सहा नहीं जाता है


हमारे मिलन का हर लम्हा तो जाने कैसे निकल सा जाता है

रोके नहीं रुकता थामे नहीं थमता, बस फ़िसलता सा जाता है


काश कभी ऐसा भी हो, मुलाक़ात के लम्हें कस कर पकड़ लूँ

उन मोहब्बत के लम्हों को कभी खत्म और फिसलने ही ना दूँ


मेरे हिस्से इंतज़ार ही क्यों आया है, सब्र का बांध टूट जाता है

जब देरी लगती है तुम्हें आने में, इंतज़ार का वक़्त ठहर जाता है