शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

" तू छोड़ दे "

ख़ुद को तकलीफ में देखकर अक्सर दिल को तकलीफ़ हुई

नागवार गुज़री वो सभी बातें जो भी मेरे साथ बीती और हुई


क्या कहते, क्या कह कर समझाते इस नादान दिल को

कि बाग़ तो उजड़ना ही था जब ख़ुद माली ही बीमार था


ए दिल जानती हूँ कि इन दिनों तू मुझसे नाख़ुश है मग़र

इसका इलाज़ यही है कि अब तू छोड़ दे मुझे मेरे हाल पर


" उलझे धागे "

ए ज़िंदगी तुझे खूब समझने की कोशिश की

उलझे धागों को बहुत सुलझाने की कोशिश भी की


मग़र तेरा कण भर भी सुलझा ना सकी

क्योंकि कैसे सुलझाती, जब इसमें रज़ा उसकी थी


" ज़िंदगी के हाथों "

जब मैं पानी में डूब रही थी तो बहुत कोशिश करती थी, 

ख़ुद को बचाने की, लाख कोशिश करती थी, हाथ पैर मारती थी,


मग़र वक़्त के तूफ़ान और थपेडों से बच नहीं सकी थी, 

अब ख़ुद को लहरों के हवाले छोड़ दिया है, वो जहाँ ले जाएँ


शायद कुछ अच्छा हो, क्या पता ऐसे ही किनारा मिले

अब तो ज़िंदगी के हाथों खिलौना सी लगती हूँ वो जहाँ ले जाए


" एक मुलाक़ात का मौका "

हो सके तो एक मुलाक़ात का मौका देना

बेशक़ बगल से बिन बोले ही निकल जाना


जाने के बाद लौट कर फ़िर कौन आता है

जाने वाले को दूसरा यार मिल जाता है


गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

" जान को मुश्क़िलें "

मेरी मोहब्बत और मेरी चाहत से रिहाई तुम्हें कभी नहीं मिलेगी

राह ए मोहब्बत से तू मेहरूम ही है, तुझे नेमत कभी नहीं मिलेगी

तुमने अपनी जान को मुश्क़िलें ख़ुद बढ़ायी हैं, ये कम नहीं होंगी

हमारे बीच मीलों की दूरियाँ हैं, मग़र राहें कभी खत्म नहीं होंगी

खुशकिस्मत हो तुम, जो मेरे इश्क़ की बारिश से सरोबार बैठे हो

संग बदकिस्मत भी हो, जो ख़ुद को मुझसे अलग किये बैठे हो


" मोहब्बत की कश्मकश "

कुछ बिखरे और फटे पन्नों को समेट कर सोच रही हूँ

इन्हें क्यों लिखा था तुमने, जब इनमें मैं कहीं भी नहीं हूँ


यही हैं वो जिन्हें मुझे देते हुए तुमने अपनी मोहब्बत का इज़हार किया था

ना चाहते भी तुमने अपनी झूठी मोहब्बत में जकड़ कर क़ैद कर लिया था


बेशक़ तुम इश्क़ की रवायतों से, मुझसे दूर हो, तुम में मैं कहीं नहीं हूँ

मग़र मैं इश्क़ की अज़ब कश्मकश में हूँ, ना मैं क़ैद में हूँ, ना मैं रिहा हूँ


" फ़ैसला कर लिया "

मुझे बेइंतेहा मोहब्बत थी उससे, मग़र शायद उसे ना थी

पीछा छुड़ाने के, फ़ासले बनाने के लाख बहाने ढूंढ रहा था


मैंने अपना हाथ छुड़ा कर, उससे दूरी बना कर फ़ैसला कर लिया

ख़ुद ही उसकी मुश्क़िलों को आसान कर दिया, आज़ाद कर दिया


" गुलाबों सी कोमलता "

गुलाबों सी कोमलता सिर्फ़ मोहब्बत में ही हो सकती है

प्यार से रखो तो सुर्ख नर्म और मुलायम एहसास देता है


कदमों तले रौंद दोगे तो हाथ नहीं कुछ पाओगे

ग़ुलाब संग काटों से भी बेइंतिहा ज़ख़्म पाओगे


" इम्तिहान ए इश्क़ "

क़दम क़दम पर इम्तिहान ए इश्क़

क़दम क़दम पर दूरियों के अश्क़

ये मिलने नहीं देंगे, लगता है कुछ

मग़र इतना तो यकीं है मुझे कि

चाहतों का ये सफ़र दूर तलक चलेगा


" तेरी यादों के फूल "

तेरी यादों के फूल अब किताबों में पाए जाते हैं

कभी नर्म हुआ करते थे, अब सूख कर झड़ जाते हैं


कभी हाथों की शान होती थी, बालों में महकती थी

अब तुम्हारी निशानियाँ किताबों में ही महकती हैं


" दुख बहुत हैं "

दुख बहुत हैं तुझसे बिछड़ने के मग़र

बेइंतेहा दर्द पहले से कम हो गया है मेरा


मैं ख़ुश हूँ लेकिन बहुत तकलीफ़ है सीने में 

हूक सी उठती है कभी कभी बेसबब बेइंतेहा


तुझसे मिलने की प्यास फ़िर जाग खड़ी होती है

कदम उठते हैं बहुत बार, मगर उन्हें मैं थाम लेती हूँ


बहुत ज़ददोज़ेहद के बाद ही दिल को मना पाती हूँ

मानती हूँ कि दुख बहुत है लेकिन दर्द पहले से बेहतर है


" एहसास गणित के सूत्र "

ज़िंदगी रोज़ नया इम्तिहान ज़रूर है मग़र

इसमें लगते एहसास गणित के सूत्र नहीं कि


कोई परेशानी आई, गणित का सूत्र लगाया

और समस्या का निदान हुआ और खत्म हुई,


ज़िंदगी में ग़र एहसासों को एहसास मिले तो

सोने पे सुहागा, समझो कोई लॉटरी निकल गई


उठते बैठते एहसासों को कोई हो जो समझे

हर इंसां किसी ऐसे ही हमसफ़र की तलाश में है


काश गणित जैसी ही होती ज़िंदगी 

लगती कठिन मग़र होती आसान


" गिले बाकी हैं "

ऐसी किस्मत कहाँ थी कि कभी

किसी का इश्क़ बेइंतेहा नसीब होता


किस्मत में तो दूसरों से बची हुई

चंद ही मेहरबानियाँ लिखी थी


और अब तो वो भी नहीं मिलती

किस्मत भी हार मान गयी शायद


क्यों मिलाया किस्मत ने जो तुम

किस्मत में थे मग़र नसीब में कहीं नहीं


क्या रह लेते हो तुम मुझ बिन

या अब भी कुछ गिले बाकी हैं मुझसे


" हम तुम "

आधे तुम आधी मैं, मिल कर बने थे हम

जब से तुम अलग हुए, रह गयी सिर्फ़ मैं


मग़र चल रही हूँ ऐसे, जैसे चल रहे हम

जाने कितनी हसरतें बसी थी इक हम में


रह गयी कुछ टूटी अधूरी बिखरी सी मैं

छूट गए सारे सपने, जब नींद से जागी मैं


भले ना आओ तुम कभी मेरे पास वापस

याद तो ज़रूर आती हूँ मैं, है मुझे विश्वास


ख़ाली हाथों को देख कर सवाल आता है

भला कभी ऐसे भी कोई रूठ कर जाता है?


" तुम्हारी याद "

तुम्हें भूलती ही कहाँ हूँ जो कहूँ कि

जब तुम याद आते हो

तो कैसा लगता है

मेरी सुबह होती हैं तुम्हारे साथ

शामें गुज़रती हैं तुम्हारी यादों के साथ

तुम मुझे तन्हा छोड़ते ही कब हो

जो आये मुझे हर पल तुम्हारी याद