आधे तुम आधी मैं, मिल कर बने थे हम
जब से तुम अलग हुए, रह गयी सिर्फ़ मैं
मग़र चल रही हूँ ऐसे, जैसे चल रहे हम
जाने कितनी हसरतें बसी थी इक हम में
रह गयी कुछ टूटी अधूरी बिखरी सी मैं
छूट गए सारे सपने, जब नींद से जागी मैं
भले ना आओ तुम कभी मेरे पास वापस
याद तो ज़रूर आती हूँ मैं, है मुझे विश्वास
ख़ाली हाथों को देख कर सवाल आता है
भला कभी ऐसे भी कोई रूठ कर जाता है?
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