गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

" इम्तिहान ए इश्क़ "

क़दम क़दम पर इम्तिहान ए इश्क़

क़दम क़दम पर दूरियों के अश्क़

ये मिलने नहीं देंगे, लगता है कुछ

मग़र इतना तो यकीं है मुझे कि

चाहतों का ये सफ़र दूर तलक चलेगा


" तेरी यादों के फूल "

तेरी यादों के फूल अब किताबों में पाए जाते हैं

कभी नर्म हुआ करते थे, अब सूख कर झड़ जाते हैं


कभी हाथों की शान होती थी, बालों में महकती थी

अब तुम्हारी निशानियाँ किताबों में ही महकती हैं


" दुख बहुत हैं "

दुख बहुत हैं तुझसे बिछड़ने के मग़र

बेइंतेहा दर्द पहले से कम हो गया है मेरा


मैं ख़ुश हूँ लेकिन बहुत तकलीफ़ है सीने में 

हूक सी उठती है कभी कभी बेसबब बेइंतेहा


तुझसे मिलने की प्यास फ़िर जाग खड़ी होती है

कदम उठते हैं बहुत बार, मगर उन्हें मैं थाम लेती हूँ


बहुत ज़ददोज़ेहद के बाद ही दिल को मना पाती हूँ

मानती हूँ कि दुख बहुत है लेकिन दर्द पहले से बेहतर है


" एहसास गणित के सूत्र "

ज़िंदगी रोज़ नया इम्तिहान ज़रूर है मग़र

इसमें लगते एहसास गणित के सूत्र नहीं कि


कोई परेशानी आई, गणित का सूत्र लगाया

और समस्या का निदान हुआ और खत्म हुई,


ज़िंदगी में ग़र एहसासों को एहसास मिले तो

सोने पे सुहागा, समझो कोई लॉटरी निकल गई


उठते बैठते एहसासों को कोई हो जो समझे

हर इंसां किसी ऐसे ही हमसफ़र की तलाश में है


काश गणित जैसी ही होती ज़िंदगी 

लगती कठिन मग़र होती आसान


" गिले बाकी हैं "

ऐसी किस्मत कहाँ थी कि कभी

किसी का इश्क़ बेइंतेहा नसीब होता


किस्मत में तो दूसरों से बची हुई

चंद ही मेहरबानियाँ लिखी थी


और अब तो वो भी नहीं मिलती

किस्मत भी हार मान गयी शायद


क्यों मिलाया किस्मत ने जो तुम

किस्मत में थे मग़र नसीब में कहीं नहीं


क्या रह लेते हो तुम मुझ बिन

या अब भी कुछ गिले बाकी हैं मुझसे


" हम तुम "

आधे तुम आधी मैं, मिल कर बने थे हम

जब से तुम अलग हुए, रह गयी सिर्फ़ मैं


मग़र चल रही हूँ ऐसे, जैसे चल रहे हम

जाने कितनी हसरतें बसी थी इक हम में


रह गयी कुछ टूटी अधूरी बिखरी सी मैं

छूट गए सारे सपने, जब नींद से जागी मैं


भले ना आओ तुम कभी मेरे पास वापस

याद तो ज़रूर आती हूँ मैं, है मुझे विश्वास


ख़ाली हाथों को देख कर सवाल आता है

भला कभी ऐसे भी कोई रूठ कर जाता है?


" तुम्हारी याद "

तुम्हें भूलती ही कहाँ हूँ जो कहूँ कि

जब तुम याद आते हो

तो कैसा लगता है

मेरी सुबह होती हैं तुम्हारे साथ

शामें गुज़रती हैं तुम्हारी यादों के साथ

तुम मुझे तन्हा छोड़ते ही कब हो

जो आये मुझे हर पल तुम्हारी याद


" ये रात बावरी "

ये रात बावरी, अब हो चली अपनी

तुम कुछ सुनाओ कुछ कहो अपनी


मैं तो तुझे जानती हूँ, तेरी हूँ अपनी

कुछ सुनाओ तुम, जो लगे मुझे अपनी


रात हुई जवान, चाँद भी है जोश पर

मेरे प्रिय, देख लूँ तुम्हें एक नज़र भर


फ़िर मिलने आओ तुम, कभी हमसे

सबसे नज़र बचा कर अपनी छत पर


" कुछ ख़्वाब मेरे "

रेत की ज़मीन पर, बह चले हैं कुछ ख़्वाब मेरे

हाथों से फ़िसल रहे कुछ टूटे अधूरे ख़्वाब मेरे


मुठ्ठी बंद करने पर भी फ़िसल रहे हैं ख़्वाब मेरे

मुठ्ठी भींचने पर भी नहीं रोक पाती हूँ ख़्वाब मेरे


चलो बता देती हूँ, तुम्हें माँग रही हूँ ख्वाबों में मेरे

तुम चाहो तो पूरे कर दो, ये कुछ अधूरे ख़्वाब मेरे


जानती हूँ तुमसे अब ऐसा हो ना सकेगा, सनम मेरे

ज़्यादा नहीं, बस कुछ ऐसे ही नन्हें से हैं ख़्वाब मेरे


" सोचो अगर ऐसा हुआ जो कभी "

सोचा है, जो हम ना मिल सके घर, गाँव गलियारे में भी

ना मिल सके अगर हम कभी ख्यालों में या ख्वाबों में भी


कैसा होगा ऐसा जीवन सोचा नहीं, ऐसा लगता तुम्हें भी

क्या तुम बिता सकोगे कभी मुझ बिन एक पल ऐसा भी


शायद तुम रह लोगे, मग़र मैं नहीं रह सकती तुम बिन कभी

साँसों बिना तन क्या, तुम बिन जीवन क्या, ऐसा नहीं कभी


कोई जतन, लाख कोशिशें कर लो ऐसा कभी होगा नहीं

तुम ख़ुश रहो हमेशा, साथ मेरे रहो ऐसा ज़रूरी तो नहीं


" शाम होते ही "

शाम होते ही तेरी यादों के कारवां संग हो लेती हूँ

कुछ और नहीं तो तेरी तस्वीर से बातें कर लेती हूँ


जब सब सोते हैं, तू जागे मन क्यों नहीं सो पाती हूँ

ख़ुद के संग हो लेती, कभी यादों को तेरी धकेलती हूँ


इंतज़ार करती हूँ तो कभी राह तेरी देखने लगती हूँ

तेरे इंतज़ार की घड़ियाँ बहुत लंबी हैं, महसूस करती हूँ


रात भर तेरी यादों का दिया जलता है, सोती नहीं हूँ

मन तो तेरे पास ही रहता है, कभी बुलाती नहीं हूँ


बेचैन करता है ये मन क्यों जागे, बहुत पूछती हूँ

सुलझ नहीं पाती ये पहेली मुझसे, उलझी रहती हूँ


" भरोसा "

सस्ते लोगों पर भरोसा करना बहुत महंगा पड़ रहा है

हर बार सिर्फ़ ऐसे ही लोगों से क्यों पाला पड़ रहा है


धोखेबाज़ों की कमी नहीं, मिल जायेंगे बीच बाज़ार

हर तरफ़ घूम रहें खूब, होगा बचना हमें इनसे हर बार


कोई जल्दबाज़ी ना करना, अपना विश्वास जमाने में

धोखेबाज़ी के सिवाय कोई दूसरा ग़म नहीं ज़माने में


दिल को थाम लेना अपने कस, यूँ ही ना दे देना इसे

हाथ पकड़ना सिर्फ़ उसी का, जो समझे दिल ओ तुम्हें


ये दुनिया है हर पल रंग बदलती है, सीख रहे हम भी

बहुत दिल टूटा हमारा, अब तुम बच कर रहना सभी


" अजीब सी मोहब्बत "

अजीब सी है तेरी भी मोहब्बत,

ना खत्म ही हुई, ना कभी नसीब हुई


ऐसा इश्क़ भी किस काम का, 

ना तेरे काम का, ना मेरे काम का


शादी के न्योते छप ना सके

इश्क़ के इश्तहार तमाम हुए


सनम की गलियों में आवारा तमाम हुए

तुम्हें भी पा ना सके, बदनाम सरेआम हुए


दिल ना लगाना कभी किसी से तू साक़ी, बहुत पछताएगा

निकाल ना सकेगा कभी दिल से उसे, सिर्फ़ याद कर पायेगा


" क्या चाहती है ज़िंदगी "

ए ज़िंदगी, क्या ज़िंदगी भर यूँ ही चलना होगा

क्या फ़िर कभी उनसे दोबारा मिलना ना होगा


सुना है उम्मीद पर दुनिया क़ायम है, रहनी भी चाहिए

मुझे और कुछ नहीं चाहत, बस तेरी एक झलक चाहिए


काश किसी मोड़ पर तुमसे, हम यूँ ही टकरा जाएँ

तेरे बगल से गुज़रने से ही मेरी, प्यासी रूह भर जाए


क्यूँ लगे ऐसा कि तेरा मिलना, यूँ इत्तेफ़ाक़ तो ना था

जाने क्या साज़िश रही ख़ुदा की, जो बिछड़ना लिखा था


इल्म है मुझे कि कसूर तो हमने बहुत किये थे अपनी ज़िंदगी में

मग़र ये भी सच है कि सज़ा हमें वहाँ मिली जहाँ हम बेक़सूर थे


" कैसा ये इश्क़ है "

आदत नहीं बस तुम मेरी ज़रूरत हो

ऐसा बोल कर दरवाज़ा बंद करवा देते हो


बिन देखे बिन बात करे रह नहीं सकते हो

और मुझे मोहब्बत ना करने का मश्विरा देते हो


इश्क़ और ज़रूरत में बहुत थोड़ा ही अंतर है

तुम्हें मुझसे मोहब्बत है मुझे इश्क़ की मनाही है


ज़वाब मांगते हो मुझसे कि क्या मुझे तुमसे इश्क़ है

और कहते भी हो कि मुझे तुमसे इश्क़ नहीं करना है


ये कैसी अजब दुविधा है, तुम्हें अपना नहीं कह सकती

तुम अपना नहीं सकते और मुझे किसी और का होना नहीं है