शाम होते ही तेरी यादों के कारवां संग हो लेती हूँ
कुछ और नहीं तो तेरी तस्वीर से बातें कर लेती हूँ
जब सब सोते हैं, तू जागे मन क्यों नहीं सो पाती हूँ
ख़ुद के संग हो लेती, कभी यादों को तेरी धकेलती हूँ
इंतज़ार करती हूँ तो कभी राह तेरी देखने लगती हूँ
तेरे इंतज़ार की घड़ियाँ बहुत लंबी हैं, महसूस करती हूँ
रात भर तेरी यादों का दिया जलता है, सोती नहीं हूँ
मन तो तेरे पास ही रहता है, कभी बुलाती नहीं हूँ
बेचैन करता है ये मन क्यों जागे, बहुत पूछती हूँ
सुलझ नहीं पाती ये पहेली मुझसे, उलझी रहती हूँ
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