अंधेरी तन्हा रातों में जब
आँखें तकिया भिगोती हैं
हाथ अनायास ही
माफ़ी के लिए उठ जाते हैं
और दिल गिड़गिड़ाता है
और कहता है कि माफ़ कर दो
जाने कितने दिल तोड़े
और पाँव तले रौंदे होंगे
जाने कितने दिल तोड़े
कितनी आत्मा दुखायी होंगी
जो आज ये सज़ा मुकरर्र
की है उसने मेरे लिए!
3 टिप्पणियां:
बढ़िया जी
Bahut sundar
Bahut Shukriya aapka :-)
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