अगर परछाईंयाँ बोल सकती तो
सबसे पहले आकर मेरी परछाईं
मुझसे कहती कि हिम्मत मत हार
चल तू दिन रात चल कार्य पथ पर
अडिग रह मंज़िल की ओर हो अग्रसर
मार्ग से तू कभी मत भटक
जो हो रहा वो ठीक, नहीं हो रहा और भी ठीक
व्यर्थ चिंता ना कर भ्रम ना कर
ख़ुदा और ख़ुद पर विश्वास कर
छोड़ा सबने तेरा संग मैं ना कभी छोड़ूंगी
रहूंगी हर पल हर समय लग के तेरे अंग
एक पल ना गँवा संताप ना कर
जो बीत गया सो बीत गया
आगे का सफ़र बेझिझक तू तय कर
ग़र कोई नहीं है तेरा अपना यहाँ
मैं हूँ तेरे साथ, तू जहाँ मैं वहाँ