सोमवार, 6 दिसंबर 2021

" हाथ छुड़ा कहीं जाना नहीं "

रात गयी सो बात गयी, शब्दों से कैसे आपको समझाऊँ,

मन में पुरानी यादों और इंसानों को लेकर कोई मोह नहीं

आप समझते हैं मन में अब भी उन्हें लेकर कोई आस रही

मैं अपनी बात शब्दों से समझाने में हमेशा असफल ही रही

वो एक बीता हुआ कल है, वापस उस कल में मुझे जाना नहीं

मेरी बातें सुन कर कितने प्यार से आसानी से पूछ लिया कि

"मैं सब ठीक कर दूँ", इन चंद शब्दों में क्या क्या नहीं समेट लिया

प्यार, समर्पण, लगाव, स्नेह, त्याग, आस सब कुछ उड़ेल दिया

इस बात पर कितनी व्याकुल हो गयी थी मैं कैसे समझाऊँ

कि मेरी किस्मत ख़राब रही और उनकी नीयत ख़राब रही

वो इंसान ही नहीं हैं इस लायक कि कभी प्यार को समझ पाते

आगे जो हो उसके लिए तैयार हूँ, मुझे ग़लत कभी करना नहीं

बहुत सहन किया, वापस उस नरक में मुझे अब कभी जाना नहीं

जो करते रहे अगर वो सही था, जो मैं कर रही हूँ वो भी ग़लत नहीं

ख़ुदा का हर फै़सला मुझे मंजूर है, इंसानों की अब परवाह नहीं

मैं खुश हूँ बहुत खुश और मेरा साथ देना, हाथ छुड़ा कहीं जाना नहीं

" मेरा भी घर "

काश मेरा भी कोई घर होता

सुबह उठते ही घंटी की आवाज़ गूंजती

दिन दोपहर किलकारियां गूंजती 

शाम ढलते पंछी लौटते

रात ढले सर छिपाये सब साथ होते

बस यही एक छोटा सा सपना है

काश कभी ये पूरा हो पाता

रिश्ता जिससे जुड़ा 

काश कभी दिल भी मिल पाता

" सच से सामना "

चेहरे को देर तक दोनों हाथों के बीच में

रख कर बहुत सोचा, बहुत रोई। 

बस इतना समझ में आया कि इस जीवन का कोई अर्थ नहीं, निरर्थक है ये। 

किसी काम या किसी चीज के लायक नहीं हूँ

आज समझ लिया और आभास भी कर लिया

बहुत दुःख हुआ जब लाखों की भीड़ में

ख़ुद को बेवकूफ पाया

सच तो यही है, 

और हाँ सच से आज सामना कर लिया मैंने

" ज़ख़्मों को अब मत कुरेद "

कभी आँसू कभी ख़ुशी बेची, ना चाहते हुए भी खिलखिलाती रही

तन मन मारा गया, मेरा बचपन नोंचा गया कभी लूटा खसोटा गया

रही बहुत बार ना नुकर करती, कभी धकेलती कभी चेहरा नोंचती

मग़र बद किस्मती से कभी बख़्शी ना गई, तन हर बार बिखेरा गया

घाव तो समय के साथ भर गए मग़र आत्मा छलनी हुई कभी ना भरी

क्या ज़िंदगी भर कीमत चुकानी पड़ेगी इस किरदार और वज़ूद की

अंजाने में सज़ा ये कैसी मुकर्रर की ए ख़ुदा तुमने इस औरत ज़ात की

जाने कब तलक झेलेगी और चुकायेगी परेशानी इस तन के साथ की

अब बस भी कर इन ज़ख़्मों को देना, अब और इन्हें नासूर ना बना

हिम्मत अब जवाब दे गयी है, मत कुरेद इन्हें, अब भर भी जाने दे

चैन से जी नहीं सकती तो कोई बात नहीं, सुकून से मर तो जाने दे

" कोई तो होता "

कोई तो होता जो सिर्फ़ मुझे ही चाहता

कुछ और नहीं सिर्फ़ प्यार ही तो चाहिए

और कुछ ये मन कहाँ कुछ चाहता है

दिल का ये सूनापन उसकी मोहब्बत से ही भर जाता

जानती हूँ किसी का भी प्यार कभी नसीब नहीं होगा

ऐसे ही खालीपन लिए जीना होगा

" मन चाहा साथी "

मुझे जो चाहिए वो इंसां यहाँ कहाँ मिलेगा

मन चाहा साथी वो हमसफ़र कहाँ मिलेगा


साथ देता जो, बस ऐसा साथी चाहिए था

ज़िंदगी के ऐश ओ आराम की तलब किसे


प्यार भरी संग निभाने की झूठी कसमें ही सही

कुछ कहता सुनाता, मेरी सुनना ज़रूरी नहीं था


उसका हर पल साथ रहना ज़रूरी नहीं था

आँखों से ही चूम लेता ऐसा साथी चाहिए था


मग़र ज़िंदगी के मरुस्थल को ख़ुद ही पार करना है

ऐसी जन्मों सी दूरी किस्मत है, बताना चाहिए था

" छाँव "

तपती दुपहरी-सा यह जीवन और तुम शीतल-सी छाँव

उग रहे मन में फफोले हैं, अपने भी ग़ैर और अबोले हैं

कड़ी धूप बरसाती अंगारे, सपनों के झुलस गए पाँव

तपती दुपहरी-सा यह जीवन और तुम शीतल-सी छाँव


नेह हुआ खंड-खंड चूर-चूर, छूट गए सब अपने बहुत दूर

तैरती रही मन के सागर में, उन बिछड़ी यादों की नाव

सागर के तट हुए दुखियारे, सूने हुए खुशियों के गलियारे

क्या करना चाँद के शहर जाकर, भला अपना मिट्टी का गाँव

तपती दुपहरी-सा यह जीवन और तुम शीतल-सी छाँव

" थोड़ी सी बेवफ़ाई "

तकिया के गिलाफ़ आँसुओं से गीले मिलते रहेंगे

वफ़ा तुझसे की, वफ़ा करते हैं और करते रहेंगे


बेशक़ बेवफ़ाई तेरा हक़ था, तूने इस्तेमाल किया

मेरे इश्क़ का तू राजा है, जा मैंने तुझे माफ़ किया


लाख कोशिशों की मुश्किलों के बावज़ूद तुझे पाया था

मग़र तूने आदतन बेवफ़ाई का रास्ता इख़्तियार किया था


क्या मिला तुझे ए तंगदिल बेवफ़ा हमसफर बेवफ़ाई करके

किसी को तू यूँ ही मिल गया मुझसे थोड़ी सी बेवफ़ाई करके


ए सनम कह देता एक बार यूँ ही फ़ना हो जाते तुझ पर

बोलता तो सही प्यार से, तेरे रास्ते से हट जाते मुस्कुरा कर


बहुत घाटे का सौदा किया तूने ए इश्क़ के सस्ते व्यापारी

अब तो दिखाई, आगे कभी ना आज़माना तू अपनी ये होशियारी


मुझ जैसा वफ़ादार जीवनसाथी तुझे कभी नहीं मिलेगा

वक़्त बीतने दे फ़िर देखना, तू मुझे देखने को भी तरसेगा

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

कश्मकश बढ़ती गई

एक बार इश्क़ और साँसों की भिड़ंत हो गई

दोनों में जम कर बड़ा दिखने की ठन गई


इश्क़ और साँसों की कश्मकश बढ़ती गई

मग़र किसी को भी जीत हासिल ना हुई


इश्क़ ने कहा मेरे बिना होता जीना मुश्क़िल

इसलिए मैं हुआ साँसों से भी बहुत बड़ा


साँसें बोली, जो थी सुन रही बहुत देर से थी चुप

मेरे बिना तुम कुछ नहीं, मैं नहीं तो इंसां नहीं


साँसों बिना शरीर नहीं इंसां नहीं, अजीब दुविधा फँसी

और इश्क़ बिना इंसां का जीना मुश्क़िल, कैसी ये घड़ी


खूब कश्मकश बढ़ती रही, भिड़ंत भी जारी रही

ना कोई निष्कर्ष निकला, ये दुविधा यूँ ही बनी रही

बुधवार, 14 जुलाई 2021

अंधेरी तन्हा

अंधेरी तन्हा रातों में जब

आँखें तकिया भिगोती हैं

हाथ अनायास ही

माफ़ी के लिए उठ जाते हैं

और दिल गिड़गिड़ाता है

और कहता है कि माफ़ कर दो

जाने कितने दिल तोड़े

और पाँव तले रौंदे होंगे

जाने कितने दिल तोड़े

कितनी आत्मा दुखायी होंगी

जो आज ये सज़ा मुकरर्र 

की है उसने मेरे लिए!

प्यार की बात अधूरी

जब प्यार की बात अधूरी हो..

जब बीच में थोङी दूरी हो..

जब मिलना बहुत ज़रूरी हो…

पर मिलने में मजबूरी हो..

तुम दिल में याद जगा लेना..

कुछ प्यार के दीप जला लेना..

जब मुझ से मिलने आ न सको..

और याद से बाहर जा न सको…

आँसुओ का पर्बत

किसी के आँसुओ का पर्बत पिघला गयी होगी

कभी दिल के खंडहरों में जाकर बैठ गयी होगी

दूर बैठी देखती होगी अरमानों को सिराते हुए

सोचती होगी कितने टूटे और कितने जाते हुए

नाज़ुक रिश्ते हैं ये आज नहीं तो कल टूटेंगे

ज़िंदगी एक मेला है इसमें कितने कब छूटेंगे

कोई निभा ना पाया साथ दिलों का भी गया

कुछ वादे कुछ कसमें देकर थोड़ा ठहराव पाया

ठहराव कुछ पलों का था स्थिरता नहीं ला पाया

आत्मबल

कौन है वह जो हर कदम पर

कदम से कदम मिलाकर चलता है साथ

दुःख की हो रात, सुख की हो बात

हाथ बढ़ाकर हाथों को देता है हाथ

तन्हा, तन्हाई में करूँ जो ख़ुद से बात

चुपके से आकर बतियाने लगता है, हर रात

धड़कनों में धड़कता है, साँसों में थिरकता है

बनकर एहसास। 

लाता है खुशियों की सौगात

चुप रहता, आवाज़ नहीं देता

लाख रूठे नाराज़ नहीं होता

ना कोई कमी, ना कोई कसर

मनाने में छोड़ता है वह हमसफ़र

उलझनों में उलझकर, परेशानियों से ऊबकर

हारने चलूँ ज़िंदगी से अगर

आ खड़ा होता है वह कमर कसकर

हर समस्या का हल है जो

बाह्य नहीं, आंतरिक बल है वह

कुछ और नहीं आत्मबल हैं वह......

ये दुःख

दुःखी तो हम रोज़ होते हैं

लेकिन ये दुःख जब

ज़्यादा बढ़ जाता है तब

ज़ख्मों से खून की जगह

शब्द टपकने लगते हैं।

नज़्म का सार

मेरी हर नज़्म का सार तुझ से है

तू ही अध्याय और पर्याय तू ही है

कैसे झुठला दूँ तुझे तू ही बसा है

सँवार लूँ तुझे अलंकारों से कर लूँ

सुसज्जित और गुनगुना हर घड़ी लूँ