जाने कहाँ से शुरूआत हुई इनकी
जाने कहाँ खतम होंगी
बचपन में ना सुना था नाम जिनका
जाने कब ये मेरे पास आती गयीं
एक एक करके अनंत हो गयी
और जिनका अंत ना हुआ
वो चिंताएँ हो गयीं l
जाने कहाँ से शुरूआत हुई इनकी
जाने कहाँ खतम होंगी
बचपन में ना सुना था नाम जिनका
जाने कब ये मेरे पास आती गयीं
एक एक करके अनंत हो गयी
और जिनका अंत ना हुआ
वो चिंताएँ हो गयीं l
आज फिर एक बार उसी ख़ामोशी ने
उसी ख़ामोशी से मेरा दामन पकड़ा
शायद शब्दों की कमी पड़ गयी
तुम्हें समझाने को
तुम चुप रहकर भी कुछ कह गए
उसी ख़ामोशी में
एक पल के लिए ख़ामोश हो गयी
भरी ज़िंदगी उस ख़ामोशी में l
तेरी यादों के दीये चाँद हाथों में लिए
सोचते रहे रात भर
बिना पलक झपकाए एक पल भर
बैठा हूँ तेरी राह ए गुज़र पर
तू आये शायद इधर
निग़ाहें ठहरी है उसी रास्ते पर
तुझे दिल नहीं चाँद चाहिए पर
तेरी नज़र टिकी है उस पर
चाँद की चाहत है तुझे
अजब तेरी चाहत है भंवर
तू दागदार चाँद की दीवानी है मग़र
तुझे पाक साफ़ दिल की नहीं कोई क़दर l
दिल के आईने को फूलों से सजा रखा है
दिल में तेरी ही सूरत मूरत को बिठा रखा है
तू माने या ना माने तेरे लिए ही अब तक बचा रखा है
तूने भी ना जाने क्या ठान रखा है किसके लिए
अपना दिल अभी तक अपने पास छिपा कर रखा है
कुछ डरी हुई सी आहें हैं
कुछ सहमी हुई सी चाहतें हैं
कैसे कहें कि तुमसे कितनी मोहब्बतें हैं
रिश्ता पलों का नहीं जन्मों का है तुमसे
रिश्ता अधूरा रहने की आहें हैं
रात भर नींद नहीं आती और जलती आहें हैं
डर है कहीं खो ना दूँ तुम्हें
सहमती हूँ कैसे रहूंगी तुम बिन
रात के काले गहरे अंधियारे में
जब सिसकती हैं ये आहें
आवाज़ नहीं करती लेकिन
ये कलेज़ा चीर देती हैं रात का
कैसे बताएँ तुम्हें कि कितने
खंज़र जिग़र के पार होते हैं
किस से कहें किस से नहीं यही उहापोह आहें हैं
रिश्ता जन्मों का नहीं तोड़ना है
कैसे कहूँ तुमसे कितनी चाहतें हैं
पूरी नहीं हुई जो चाहतें वही तो मेरी आहें हैं
अंधेरी तन्हा रातों में जब
आँखें तकिया भिगोती हैं
हाथ अनायास ही
माफ़ी के लिए उठ जाते हैं
और दिल गिड़गिड़ाता है
और कहता है कि माफ़ कर दो
जाने कितने दिल तोड़े
और पाँव तले रौंदे होंगे
जाने कितने दिल तोड़े
कितनी आत्मा दुखायी होंगी
जो आज ये सज़ा मुकरर्र
की है उसने मेरे लिए!
सुबह सुबह जब उसने ली अंगड़ाई
गालों पर उसके जैसे छाई अरुणाई
आदित्य ने गालों से जुल्फ़ें सिमटाई
चहुँ और लालिमा अपनी है बिखराई
देख पवन भी उन्मुक्त गगन में मानो
उसकी ज़ुल्फ़ों की छटा ने घटा फैलाई
हैरान हूँ मैं ये सोचकर कि मालिक ने
क़ायनात् कितनी फ़ुर्सत से है बनाई
जाने क्या उसके मन में समाई और
उसने ये प्रकृति हमारे लिए बनाई
सबसे अलग सबसे जुदा थी
मौन अलग और बोल अलग
ख़ुद की हर बात पे फ़िदा थी
तुम नहीं समझोगे
तुमने देखा ही कहाँ
कभी मेरी तरफ़ मुड़कर
देखते तो पाते मुझे अलग
औरों की तरह मुझे भी
ग़लत समझ लिया तुमने
अब वक़्त नहीं है
समझने समझाने का
अब जियो तुम अलग
और मैं अलग
जो चला जाता है वो वापस क्यों नहीं आता
उसका मन नहीं करता या आया नहीं जाता
जाने वालों के बिना हमसे रहा नहीं जाता
कैसे कहें कि उनके बिना जिया नहीं जाता
जाने वाले हो सके तो लौट कर आना
ऐसे भी कोई जाता है कि जाने के बाद
दोबारा लौट कर आया नहीं जाता
कभी कभी सुबह का सवेरा उम्मीदों से भरा और
साँझ का संझेरा नाउम्मीदों से भरा बन जाता है
कभी सुबह का जोश, उजाला कम होते कम होता है
कभी साँझ ढलते ढलते खत्म होने को खत्म हो जाता है
आ गयी हूँ मैं जिस राह पर चलते चलते यहाँ तक
प्रभु उसी पर मुझे चलाये रखना कभी ना गिरने देना
कभी डगमगाऊँ हिम्मत हारूँ तो तुम आकर थाम लेना
साहिल दूर सही कितना भी कभी ना मुझको डूबने देना
सफ़र लंबा मंज़िल ऊँची बाँह मेरी तुम पकड़े रहना
राह मुश्किल रास्ते दुर्गम कभी ना मुझको डिगने देना
थक हार कर कभी जो बैठूँ नई उम्मीद तुम आकर भर देना
डूबते ढलते अंधियारे की तरफ़ नहीं,
बढ़ते उम्मीदों के उजाले की तरफ़ चलाये रखना
पंछी जब लौटते हैं अपने घोंसले घरौंदों की ओर
देख उन्हें ये मेरा मन भी चाह से भर जाता है
सोचने को मजबूर हो जाती हूँ कि कब कम होंगे ये
राह के कांटे और पथरीले संकरे रास्तों के कठिन सफ़र पे
है उस दिन की प्रतीक्षा जब मैं लौटूँ मैं भी अपने नीड़ में
बने रहना चलते रहना साथ मेरे जब तक ना पहुँचूँ अपनी मंज़िल पे
मंज़िल से ध्यान ना भटकने देना चातक की तरह निहारूँ मैं
चाहे थकी हूँ हार मानी हूँ चाहे छाले भरे हों पाँव में
बैठी हूँ मैं ध्यान लगाए देखूँ तुझे इसी उम्मीद से
कि शायद मैं भी सुकून की ठंडी सांस लूँ अपने घर तुम्हारी छाँव में
वो रात कैसे गुज़री मत पूछ मेरे बेवफ़ा हमसफ़र
जाने कितनी ही सैकड़ों रातों पर भारी थी वो एक रात
कलेजा मुँह को आता था कदम ना बाहिर उठते थे
भारी मन वजनी कदमों से तेरी चौखट सदा के लिए
ना चाहते हुए भी लांघी थी मैंने, पर ना रोका तुमने
अपने घर से निकाले जाने की व्यथा तुम क्या जानोगे
जिसने कभी ना अपना घोंसला छोड़ा, ना छोड़ी कभी डाली
रात सुनसान अकेली थी वो, नन्हीं जान मेरे साथ थी
वो अंधियारी काली अमावस से गहरी काली रात थी
उस रात सड़क पर कुत्ते कम दरिंदे ज्यादा दिखते थे
कदम ना उठते थे आगे, जाने क्या मन में सोचती थी
एक कदम आगे रखती थी, एक बार पीछे मुड़कर देखती थी
देखती थी वो बंद किवाड़ें, जिन पर हुआ था स्वागत मेरा
जिन पर लगी थी कभी मेहंदी वाले हाथों से हल्दी की थापें
एकटक खड़ी इंतज़ार करती थी कि कुछ जाने पहचाने
शब्द और आवाज़ मेरे बढ़ते रुकते कदमों को विराम देंगें
पर अफ़सोस ऐसा हुआ नहीं, जो हुआ वो कभी सोचा नहीं
आखिरकार छोड़ पी का घर, बाबुल के आंगन वापस चली
कभी कभी कितना मन होता है अपनी देहरी पूजने और
अपना घर गली आंगन लीपने और पूरने रंगोली बनाने का l
ए मन उदास ना हो निराश ना हो वो मौका भी जल्द होगा
जब मैं घर के अंदर मेरा बुरा चाहने वाला घर के बाहर होगा
इंतज़ार है मुझे उस दिन का इंसाफ तू ज़रूर करेगा
बिन आवाज़ की लाठी से हिसाब करेगा तू वार करेगा
ज़िंदगी के छोर पर जो तुम मिल गए किसी मोड़ पर
बात करोगे नज़रंदाज़ करोगे या देखते रहोगे देखकर
चाहे जो मन करे वो तुम करना ये छोड़ा है तुम पर
मिल जाएँ जो राह पर शायद तुम कुछ देर रुकोगे
चौंक जाओगे या कुछ ठिठकोगे अनायास देख कर
शायद तुम नज़रें फेरोगे लेकिन ज़रा सोचना मुझे देखकर
क्या तुम कुछ ऐसा करोगे या तुमको कुछ याद आयेगा
कुछ सोचकर चिंता छा जायेगी तुम्हारे ललाट पर
करीब आकर आँखें डाल कर देखोगे तुम मेरे चेहरे पर
धीरे से तुम हाथ बढ़ा कर रख दोगे अपना हाथ मेरे हाथ पर
शायद तुम उदास होगे या कुछ मुस्कुराओगे थोड़ा रुक कर
इनमें से ऐसा ही कुछ करोगे यकीं है मुझे पूरा तुम पर
उम्मीद है शायद तुम कुछ और करोगे यूँ अचानक मुझे देख कर
मेरा लिखा पढ़ेगा कौन
सारी दुनिया ख़ुद में मौन
मैं भी मौन तुम भी मौन
जानता है किसको कौन
सबके हाथ में रहता फोन
मेरा लिखा पढ़ेगा कौन
मैं कौन और तुम कौन
हाल पूछता किसके कौन
दूसरों के दिल को टटोले कौन
मैं भी मौन तुम भी मौन