Khoobsurat alfaazon ka safar.....
स्त्री जो छली गयी
कभी अपने प्रेमी से
कभी अपने पति से
कभी घर के अपनों से
कभी सारे समाज से,
बच ना सकी वह कहीं भी
और कभी वह छली गयी
कभी ख़ुद के डर से,
ख़ुद से भी ख़ुद को
बचा ना सकी,
कैसी विडंबना रही
जो थी मज़बूत स्तंभ
आज सहारे ढूँढती
तलाशती घूम रही
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