इस ख़ाली कैनवास पर कौन सी तस्वीर उकेर दूँ
नफ़रत या प्यार की लकीरें खींच कर चित्र बना दूँ
रंग बिखेर कर अतीत से जुड़ी यादें अंकित कर दूँ
या फ़िर वर्तमान के रंगहीन लम्हें बिना रंग बना दूँ
सुनहरे सपनों को सच कहती कोई कल्पना रंग दूँ
या भ्रम से बाहर खींचता कोई कटु सत्य सहेज लूँ
मन में उठते बैठते मनचले से ख़्वाब सजा दूँ या
ख्वाबों की कोई नई दुनिया ही रंगों से बसा दूँ
जी तो करता है कि किसी के अधूरे सपने रंग दूँ
देख जिसे ख़ुशी आ जाए चेहरे पर ऐसी दुनिया रच दूँ
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