कह नहीं पाते जब किसी से,
ख़ुद को शब्दों में पिरोया करते हैं,
सामने किसी को आँसू दिखाते नहीं
मर्द भी अकेले में रोया करते हैं,
दर्द जब बढ़ कर आ जाए गले तक
ना निगलते ना सटकते हैं कहीं गले से,
कहते नहीं किसी से कभी दिल की
ख़ामोशी से ही बयाँ करते हैं,
ज़ख़्म बड़ा हो तो उतर आता है आँखों में
दिखाते नहीं कभी किसी को,
नज़र बचा कर सबसे छिपाया करते हैं
बना लेते छोटी कब्रगाह सीने में
बस वहीं दफ़नाया करते हैं,
झूठ नहीं सच है ये, गर मानो तो
मर्द भी गहरे ज़ख़्म पा कर रोया करते हैं!
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