जब माँ गई तो लगा कि सारी हँसी ख़ुशी चली गई,
अब तक कभी दिल से ख़ुश नहीं हो सकी,
मुस्कुराती ज़रूर हूँ मग़र दिल से नहीं
और जब पापा गए तो लगा सारे हक़ खत्म
एक झटके में खुशियाँ खत्म, दूसरे में सहारा खत्म
क्या बताएँ तुझे ए ज़िंदगी कि दो झटकों में ज़िंदगी खत्म
कैसे कहुँ कि दो झटकों में सारा खेल खत्म
ज़िंदगी ने संभलने का मौका भी ना दिया
जी रहे हैं लेकिन सच कहें तो काट रहे हैं ज़िंदगी तुझे
ज़िंदगी जी तो माता पिता के साथ जाती है,
बाकी ज़िंदगी तो हम काटते हैं,
कभी इसके लिए कभी उसके लिए।
ज़िंदगी तू बहुत बेरहम है,
क्या तुझे ज़रा भी तरस ना आया मुझपे
बहुत मुश्किल है अपनों के बिना जीने का दर्द बयाँ करना
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